________________ ( 164 ) मोदकप्रायानिष्टानर्थानित्थं भुझे / ८-नाश्रान्तेन सम्प्रति धनमाप्यते (उद्योगप्रस्विन्नगात्र एवार्थाल्लभते) / ६-त्वं तु परगृहेषु विसंवादमुद्भाव्य कौतुकं मार्गयसि / १०-दाल में....."अस्तीह शङ्कावकाशः / ११-अद्यत्वे सर्वः स्वार्थमेव समीहते, परहितं तु नैव चिन्तयति / १२-प्रात्मनो विनोदाय कल्पतेऽयं विचारः (प्रात्मानं विनोदयितुं कल्पोऽयं विचारः)। अभ्यास-१६ १-जब राजा महल में वापिस आया, तो देखा कि रानी औंधे मुंह पड़ी है'।२-जब ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। ३-तुम तो आये दिन कोई न कोई बात खड़ी कर देते हो / यदि तुम्हारा कोई झगड़ा है तो तुम उसे पंचों के सामने रख सकते हो। ४-प्राखिर३ इस तू तू मैं मैं से क्या लाभ ? ५-अब तो पिता की कमाई खा रहे हो, यदि कमा कर खाना पड़े तो नानी याद आ जाय / ६-मेरे पाँव में काँटा चुभ गया है, उसे सुई से निकाल दो। ७-तुमने मेरी नाक में दम कर रक्खा है। एक बार तो कह दिया कि अब कुछ नहीं हो सकता / ८-जी मैं आया कि मार-मार कर उसका कचूमर निकाल + / ६-तुम तो अपनी ही हाँकते जाते हो और किसी को सुनते ही नहीं। १०मैं रात भर खाट पर पड़ा करवटें लेता रहा / मैंने सारी रात आँखों में काटी। ११-अच्छा जो हुआ, सो हुआ, भविष्य में सावधान रहना। १२-यहाँ हमारी दाल नहीं गलती प्रतीत होती है, हमें यहाँ से कूच करना चाहिये / १३-क्या तुमने अपने घोड़े की नाल बँधवा ली है। ___संकेत–२-भाग्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र / ५-यदि स्वयमुपाय॑ विनियुञ्जीथा बाढं दुःखमश्नुवीथाः / यहाँ प्रसिद्धिवशात् कर्म (अर्थ, धन) न कहने में भी कोई दोष नहीं। जैसे-देवो वर्षति-इत्यादि वाक्यों में प्रसिद्धिवश कर्म (जल) नहीं कहा जाता / ६-चरणे मे कण्टको लग्नः / तं सूच्या समुद्धर / ७दृढं कर्थितोऽस्मि त्वया / (नूनं कण्ठगतप्राण इव कृतोस्मि त्वया)। ८-इदं मे ... 1-1. अवमूर्धशयाऽऽसीत् / 2-2. अनुदिनं नवं नवं विवादविषयमुद्भाबयसि / 3-3. अन्ततो गत्वाऽनेनाक्रोशेन किम् ? (अलमन्योन्यमाक्रुश्य)।