________________ ( 162 ) पूर्वाव थायाः परिहीयते / ११-पतिविप्रयोगेण सा तनुतां गता (भर्तृ विश्लेषकशि / सा) कङ्कालशेषा समजनि। १२-प्रवृत्तसम्पाती तो व्यश्लेषयम् (पृथगकार्षम्) / १३-एकमेवार्थमनुलपसि नार्थान्तरमभिधत्से, न चान्यं शृणोषि / १४-अद्यत्वेऽप्रतिहतोऽस्य प्रभावः / यतस्ततो महाल्लिभते / अभ्यास-१७ १-उसका दाव नहीं चला, नहीं तो तुम इस समय अपना सिर धुनते होते / २-उसके भाषण को सुन कर मैं तो नख-सिख में प्रेरणा से भर गया, नस नस में संजीवन रम गया / ३-तुम तो घड़ी में मासा हो और घड़ी में तोला ।४-उस दुष्ट से तुमने कैसे पीछा छुड़ाया ? ५-हमने उसकी खूब खबर२ ली / ६-माता बच्चे को गुदगुदी करती है, बच्चा खिलखिला कर हँसता है और माता का दिल बाग-बाग होता है / ७-हम तो प्रेम के ठुकराये, दुर्दैव के मारे हैं, हमें मत छेड़ो। ८-कोई भोला-भाला मनुष्य इधर आ निकले, तो तुम उसका सिर मूंड लेते हो। ह-पथिक ने अपना सांस रोक लिया और रीछ ने उसे मुरदा समझ कर अपनी राह ली। १०-चिर प्रवासी तथा रोगी रहने से वह ऐसा बदल गया है कि पहचाना नहीं जाता। ११-इस महायुद्ध में अनेक वीर काम आये और कई बेचारे नागरिक भी खेत हो रहे। १२-बातों ही बातों में हमारी यात्रा कट गई। १३-सभा में जब उसे झूठ बोलने के कारण चारों ओर से फटकार पड़ी तो वह बगलें झाँकने लगा। १४-मैं मर कर तुम्हारे सिर चढूगा / १५-बेचारा लड़का मुँह 3 देखता रह गया / १६-रणथम्भौर के किले में घिरे हुए राजपूत सिपाही खाद्य सामग्री के कम हो जाने से बाहर आ गये और जान से हाथ धोकर खूब लड़े। १७-उसकी ऐसी दशा देखकर मेरा दिल भर आया / संकेत-१-न स प्राभवच्छाठ्यस्य, अन्यथा सम्प्रति स्वानि भाग्यानि निन्दिष्यसि / यहाँ लुट् का प्रयोग व्याकरणानुशिष्ट न होता हुआ भी व्यवहारानुकूल है। . 1-1. प्रतिधमनि नवः प्राणसञ्चारः। 2-2. साधु (सुष्ठु) तमशिष्म / 3-3. विस्मयप्रतिहतोऽभूत् / ४-४-कारुण्यमाविशच्चेतः / अथवा करुणाईचेता अभवम् /