________________ ( 160 ) दुःख से इतना भरा हुमा है कि मैं कुछ नहीं कह सकता। -ज्यों ही उस पर संकट माया सारे मित्र' जो दांतकाटी रोटी खाते थे', चम्पत हो गये। - जितना गुड़ उतना मीठा, जितना दान उतना कल्याण / १०-प्राप उसकी चिकनी चुपड़ी बातों पर फिसल गये, पर स्मरण रहे वह तो पहले दर्जे का गुण्डा है / ११-तुम्हें तो अपने काम से मतलब होना चाहिए, औरों की बातों में क्यों टांग पड़ाते हो ? १२-प्रातः मैंने खाली पेट दूध पी लिया था, अतः अबर मेरा जी घबराता है / १३-उधार सौदा तो देना कहीं दूर रहा 3, यह दुकानदार तो कुछ रुपये प्रगला' मांगता है / १४–अतिथियों की टहल सेवा करने में गृहस्थ ने कोई बात उठा न रक्खी५ / १५-ठाट-बाट से रहना तो दूर रहा, वह तो वास्तव में अपना निर्वाह भी नहीं कर सकता। ____संकेत-१-सम्प्रत्यनध्यायदिवसाः। अव्यापूतस्य (अव्यग्रस्य) मे कथं कथमपि याति कालः / २-यद्यस्योचितं तत्समाचरन् स एव शोभते, इतरस्तु प्रवृत्तो लोकस्य हास्यो भवति (विडम्ब्यते)। ३-मा तेऽरातिः प्रतिष्ठात् / (प्रतिष्ठां गात्, लब्धास्पदो भूत्), अन्यथाऽसौ तेऽतिवेलं कष्टदो भविष्यति / ५द्वाःस्थायोपप्रदानं चेन्नोपहरिष्यसि (न प्रदेक्ष्यसि प्र-दिश्-लुट्) न हि सोऽन्तरगारं ते प्रवेष्टुं दास्यति / यहां 'दास्यति' का प्रयोग व्यवहार के अनुकूल है / "बाष्पश्च न ददात्येनां द्रष्टुं चित्रगतामपि"-मेघदूत / ६-प्रवचूर्ण्यतेऽयं गोधूमः, एष साधीयश्चूर्ण्यताम् / ८-यावदेव तस्य विपदुपस्थिता (उपनता) तावदेवास्य हृदयङ्गमाः सखायोऽदर्शनं गताः / १०-मा त्वं तस्य मधुरवचनेष्वाश्वस्तो भूः (चाटूक्तिषु विश्वसीः)। परमसौ वज्रधूर्त इति प्रतीहि / ११-भवान् पराधिकारचर्चा किमिति करोति ? १५-प्रास्तां तावर्जितं जीवितम्, (विभवेन लोकयात्रानिर्वाहणम्) स तु कथञ्चिलिर्वोढुमपि नेष्टे / प्रभ्यास-१६ १–मेरे पैर का अंगूठा उतर गया है। दर्द से मरा जा रहा हूँ। 2-- 1-1. येषां सग्धिश्च सपीतिश्चाभूताम् / 2-2. वममेच्छा मेऽस्ति / मस्ति ममोत्क्लेदः / 3-3. ऋणेन क्रयदानं तु दूरे। 4-4. अग्रतो दीयमानां द्रव्यमानामिच्छति / 5-5. न यत्नमुपंक्षिष्ट /