________________ ( 166 ) ३-जनकेन श्यामो नामात्मजोऽतिमानेनोन्नमितः, स न केवलं ज्ञातीनवजानाति पिर्तुर्वचनमपि नानुरुध्यते / ४-एते उपानहावतिसंसक्त उपानदन्तरे दर्शय / ६नावैषि मे सारम् / अलमहं सव्येनापि पाणिनाऽदः सचितुम् / ७-तैमूरलङ्गो दिल्लीमकान्तमुत्सादयामास (इष्टकाचयतां निनाय)। ८-इदमद्भुतं कर्म तथा प्राणात्ययम् (जीवितसंशयम्) उत्पादयति यथा प्रेक्षकाणां लोमानि हृष्यन्ति (रोमाण्यञ्चन्ति) / १२-सखेऽपह्रियेऽहं निद्रया (निद्रा मां बाधते, निद्रयाऽभिभूतः निद्रालुरहम्)। अभ्यास-२१ १-अाज सबेरे ही सबेरे बीस रुपये पर पानी फिर गया। २-व्यायाम सौ दवा की एक दवा है फिर, हींग लगे न फिटकिरी / ३-ऐसा अँधेरा था कि हाथ को हाथ सुझाई न देता था। ४-जो दूसरों के लिये गढ़ा खोदता है वह खुद उसमें गिरता है / ५-पुरुष बुलबुला है जल का ! क्या विश्वास है जीवन का? ६-मुझे इस बात का सिर पर नहीं पता लगता / ७-क्यों भाई, तुमने परीक्षा में परचे कैसे किये, मेरा तो सिर चकराता है। ८-मुँह पर थप्पड़ लगानो, कनपटिया पर एक घुसा मारो, देखो, तीर की तरह सीधा होता है या नहीं ? ६-वाह यार वाह, बारह वर्ष दिल्ली में रहे, भाड़ झोंकने के सिवाय कुछ न सीखा ? १०-जो कार्य नीति से निकलता है, वह बल से नहीं निकलता / ११मित्र ! सुना है तुम्हारी नौकरी बड़े मजे की है (सुखस्ते नियोगः) / काम तो कुछ नहीं, पर वेतन तो अच्छा है / १२-मेरा तो चिल्लाते-चिल्लाते गला बैठ गया, परन्तु यहाँ कोई सुनता ही नहीं। १३-उधार नहीं देना चाहिये, इससे न केवल रकम वरन् मित्र भी हाथ से जाते रहते हैं / १४-श्रीमान् ! आप क्या कहते हैं, कहाँ वह लंगोटिया लौंडा और कहां मैं अमीरजादा। १५-ज्यों त्यों करके पहाड सी रात तो कटी। देखें दिन कैसे कटता है। १६-डाकूओं का नाम सुनते ही बन्दूकची के हाथों के तोते उड़ गये। १७-वह गिरगिट की तरह 1. सच् के इस अर्थ में 'त्रीणि ज्योतींषि सचते स षोडशी' यह ऋग्वेद का मन्त्र प्रमाण है। 2-2. यः परार्थ निहन्तुमुपायं चिन्तयति /