________________ ( 153 ) जीवन की समस्या से तंग आया हुआ संसार इस सुनहले नियम को नहीं मानता। २-पिता अपने बच्चे का नाम रखता है। इस अवसर पर बच्चे को स्नान कराकर नये वस्त्र पहनाये जाते हैं और भाई बन्धुत्रों में मिठाई बांटी जाती है। ३-अच्छे लोगों की इच्छा फलित हो जाती है। वे देवताओं के अनुग्रह के पात्र होते हैं / ४-दुःख के बाद प्राप्त हुआ सुख अधिक प्रिय होता है, जैसे घने अंधकार में दीपक का प्रकाश रुचिकर होता है / 5- मंगल पदार्थ निराशता से प्राप्त नहीं होते, इसलिये मनुष्य को पहली असफलताओं के कारण अपना तिरस्कार नहीं करना चाहिये / ६-अहो ! भाग्यहीन पुरुषों के लिये एक के पीछे दूसरा दुःख चला पाता है / ७-जो भाषा तुम सीखते हो उसका प्रयोगात्मक ज्ञान प्राप्त करने के लिये सदा उद्योग करना चाहिये। सरल और सुगम संस्कृत बोलने का अभ्यास करो। ८-इस कपड़े का धागा अलग-अलग हो गया है / यह पहनने के योग्य नहीं रहा। अब इसे फेंक दो। ६-तुम पहली अवस्था से कम नहीं हो। तुम्हारी दीप्ति, कान्ति और द्य ति वैसी ही है। १०सभा विसर्जन हुई, और लोग अपने अपने घरों को चले गये / ११राजा के आने पर रक्षा-पुरुष रास्ते के साथ-साथ पंक्ति में खड़े कर दिये गये / १२-तुम राज-सचिव के हाथ में कठपुतली के समान नाचते हो / १३-जब लड़का बालिग हो गया तो पिता ने अपनी बहुत सी सम्पत्ति उसके सुपुर्द कर दी और दुकान उसके अधिकार में कर दी। १४-सेनापति वीरसेन को लिख दिया जाय कि आप ऐसा करें। 15- इस गांव से प्राम के वृत्त पूरब की ओर हैं और अशोक के पश्चिम की ओर / ____ संकेत-७-यां भाषां शिक्षसे तां प्रयोगतः परिचेतुं सततं यतस्व / सरलेन सुगमेन च संस्कृतेन वक्तुमभ्यस्यस्व" / यहां 'संस्कृते' सप्तम्यन्त का प्रयोग व्यव. 1.-1. नाम करोति / 2--2. विसृष्टं सदः / 3. यथास्वम्, यथायथम् / 4. पुत्तलिका, पुत्रिका, शालभञ्जिका। 5-5. प्राप्तव्यवहारदशोऽभूत् / और दुकान..."पापणे च तमध्यकरोत् / 6--6. सेनापतये वीरसेनाय लिख्यताम्यहां चतुर्थी 'क्रियाग्रहणमपि कर्तव्यम्' इस वार्तिक के अनुसार हुई है / यहां द्वितीया का प्रयोग 'प्रति' के योग से अथवा 'उद्दिश्य' का कर्म बनाकर हो सकता है, अन्यथा नहीं। 7. यहां 'मम्यस्यस्व' के स्थान पर अभ्यस्य परस्मैपद में भी