________________ ( 157 ) लड़की है / देखने में तो यह 'नादान मालूम पड़ती है' ; मानो संसारकी इसे हवा ही नहीं लगी / ११-आज बाजार बहुत तेज था, इसलिए चावलों का भाव न बन पड़ा। १२-जहां पर फूल है, वहां कांटा भी। इसलिए मनुष्य को आपत्ति झेलने के लिए सर्वदा तैयार रहना चहिये / १३-+मित्र वह है, जो विपत्ति में काम आये। १४-तन्दुरुस्ती हजार नियामत है। १५-पाप तो हमारे हमेशा के ग्राहक हैं / आप से हम कभी अधिक मोल ले सकते हैं अथवा खराब वस्तु दे सकते हैं ? ___संकेत-१-मोहनस्तथा वेगेन प्राहरत्कन्दुकं यथाऽऽदर्शः परिस्फुटय परिस्फुटय खण्डशोऽभूत् / ३-त्वया स्वहस्तेनैवाङ्गाराः कर्षिताः, यत्त्वं प्रत्यक्षं विकुर्वाणमपि सुतं लालनावशो भूत्वा नावारयः / कर्षिताः-यहां स्वार्थ में णिच् हुआ है / ५अर्थमन्तरेण कीदृशोऽसाविति कथाप्रसंगेन पर्यवैषम् / ६-अवशिष्टाप्याशा हता (अस्तंगता) / ७–अत्र महासंख्ये उदरपूरं भोक्तुमपि न लभ्यते, किमुतौपयिको योगक्षेमः ? ११-अद्य विपण्यां पण्यानां महीयानर्घोऽभूत् , तस्मात् तडुएलानां मूल्ये मे संविन्नाभूत् / १२-नहि कण्टकान् सुमनसो व्यभिचरन्ति (नहि सुखं दुःखेनासंभिन्नमस्ति, नहि सम्पदो विपद्भिरननुस्यूताः सन्ति) / तेन व्यापदो (व्यसनानि) विसोढुं सज्जेत् / विसोढुम् में षत्व नहीं होगा। १४-स्वस्थं शरीरम् (कल्यः कायः) अनुत्तमं सुखम् / अभ्यास-१३ १-तुम बच्चे हो, जमाने की चाल ढाल से परिचित नहीं हो। फूंक-फूंक कर पग धर३ मग में लाग न जाय शल कहीं पग में। २-जो हो, सो हो. मैं उसके आगे कभी नहीं झुकूँगा / ४-चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात / ५-यदि थोड़ा 2 भी सब लोग इस निर्धन गृहस्थ ब्राह्मण को दें तो इसका यथेष्ट निर्वाह हो जायगा / बूंद-बूंद मिलने से नदी बन जाती है। ६-बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय। ७-पहले उसने अपनी जायदाद गिरवी रक्खी थी, अब वह दिवाला दे रहा है / ८-रामचन्द्र जी ने कहा-माता जी ! प्रापकी प्राज्ञा सिर माथे पर / मैं अभी वन को जाता हूँ। ९-उसकी मुट्ठी गरम करो तो काम हो जायगा, नहीं तो वह अड़चन डालेगा। १०-वह उसकी उंगलियों पर नाचता है / ११-इधर-उधर की बातें न बनाओ, ठीक कहो कि 1-1. असंविदानेव प्रतिभाति / 2-2. प्रदूषिता लोकसंसर्गेण / 3-3. प्रवेक्ष्यावेक्ष्य चरणं न्यस्य, दृष्टिपूतं पादं न्यस्य /