________________ ( 155 ) सहित प्रयोग स्वार्थ में देखा जाता है।। पल में परलय होयगी......"पुरा भवति भूतसंप्लवः, ततः किं प्रतिपत्स्यसे ? ६--स पक्षद्वारेण प्रकोष्ठं निभृतं प्राविशत् / ७-मम सोदर्योऽहं च विजगीषा-खेलां प्रेक्षितुं यावः, न विद्वः कदा परापतावः / यहां 'परापतावः' (परापतिष्यावः) लुट् के स्थान में प्रयुक्त हुआ है। यह भी व्याकरण के अनुसार निर्दोष है / १३-पुत्रवधं निरयातयत् (पुत्रहत्यां प्रत्यकरोत्) / अभ्यास-११ १-लज्जावती सुन्दरता में अन्तःपुर की दूसरी स्त्रियों से बाजी ले गई है / २–मेरी घड़ी में इस समय पौने तीन बजे हैं / ३-जब डाक्टर आया तो रोगी के प्राण होठों पर थे। ४-वह सिगरेट पीये बिना नहीं रह सकता। ५-मुझे तेरे जैसे शरारती बालकों से कभी पाला नहीं पड़ा। निश्चय ही तुम लाड़ प्यार से बिगड़ गये हो। ६-स्त्री के देहान्त के बाद हरि को यह' धुन लगी कि मैं साधु हो जाऊँ' / ७-चार बदमाश बेचारे 3 साहूकार पर टूट पड़े, और उसको मार-मार कर (प्रहारं प्रहारम्) अधमरा कर दिया / ५-एकदम वसन्त के मा जाने से पशु-पक्षी कामविकार को प्राप्त हो गये, दुःखशील यतियों ने ज्यों-त्यों मन पर काबू पाया / -भई, जाने भी दो, गड़े मुर्दे मत उखाड़ो। १०-मापने मेरी दुःख भरी कहानी (कथानक-नपुं०) सुन ली / कृपया इसे पाप अपने तक ही सीमित रखें / ११-हिरण को देखते ही शेर उसकी पोर दौड़ा और एक झपट में ही उसे मान दबाया / १२-उसने मोहन को खूब उल्लू बनाया / १३-मुगलों के अत्याचारों को सुनकर खून खौलने लगता है / १४-गाड़ी को कीचड़ से निकालने के लिये मैंने एडीचोटी का जोर लगाया, पर वह टस से मस न हुई / १५-लण्डन में मनुष्यों की चहल-पहल, गाड़ियों यथा--पंचतान्यो महायज्ञान्न हापयति शक्तितः (मनु० 371) / द्रुतमेतु न हापयिष्यते सदृशं तस्य विधातुमुत्तरम् (माघ• 16 // 33 // ) / . 1-1. भिचुवृत्तिमातिष्ठेयमिति सन्ततमचिन्तयत् / 2. जाल्म, असमीक्ष्यकारिन्-वि० / 3. अवश-वि० / 4--4. पात्मन्येव गोपाय / (एतत्त्वन्मुख एव तितु) / 5-5. एकयैव प्लुत्या / 6-6. आक्रामत् / 70-7. रक्तमुत्क्वय्यत इव /