________________ ( 156 / की भीड़-भाड़ तथा व्यापार की धूमधाम देखने योग्य है / १६--वह सदैव मेरो उन्नति के मार्ग में रोड़े अटकाता रहा है। संकेत-१-लज्जावती लावण्येन सर्वान्तःपुरवनिताः प्रत्यादिशति (अतिक्रामति) / २-अधुना मम कालमापनी (घटिकायन्त्रम्) पादोनां तृतीयां होरां दिशति / ४-स धूमवति (तमाखुनाली) विना निर्वोढुं नालम् / ५--न मे संव्यवहारोऽभूत् पुरा त्वादृशैश्चपलैर्माणवकः। दुर्ललितो ह्यसि / ८--""यतयोऽपि कथंचिदीशा मनसां बभूवुः / --आर्य ! सहस्व (विरम) कृतमतिक्रान्तस्मारणेन (अलमतिक्रांतं स्मारयित्वा)। १२-स मोहनं मातृमुखमुपदर्य व्यडम्बयत् / १४-शकटं कर्दमादुदतुं सर्वात्मना प्रायस्यम्, न च तत् ततः पदमेकमपि प्रासरत् / १५-लण्डननगरे प्रचुरो जनसंचारः संचरद्यानसम्बाधो वणिग्व्यापारभूयस्त्वं च दर्शनीयम् / दर्शनीयानि' भी कह सकते हैं। १६-स मे समुन्नतिपथं नित्यं प्रतिबध्नाति / अभ्यास-१२ १-मोहन ने इस जोर से गेंद मारी कि शीशा टूट कर चूर-चूर हो गया। २--उस पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा, पर उसने जी न हारा / सच कहा है प्रांधी में भी अचल-अचल रहते हैं / ३-तुमने स्वयं अपने लिये गढ़ा खोदा जब तुमने अपने पुत्र को अपने सामने ही बिगड़ते देखा और लाड़ प्यार वश उसे कुछ नहीं कहा / ४--अधिक से अधिक' आपको दस बारह मिनट और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। ५-मैं बातों ही बातों में उसकी आर्थिक अवस्था को जान गया। मुझे यह पहली बार मालूम हुआ कि वह तंग है / ६--जो थोड़ी बहुत प्राशा थी, वह भी धूल में मिल गई। ७-वर्तमान महायुद्ध के समय यथेष्ट जीवन निर्वाह का क्या कहना, यहां तो पेट के लाले पड़े हैं। ८-आजकल दूध घी का क्या कहना', यहां तो शुद्ध तेल भी नहीं मिलता। -अपने आप पर भरोसा रखो, कभी तो दिन फिरेंगे ही। देखिए--सूरदास ने क्या कहा है--"सब दिन होत न एक समान"। १०--मोहकितनी चालाक 1--1. अधिकाधिकाः, उत्तरोत्तराः (दशद्वादशाः कलाः) / 2-2. किम्पुनः पयःसर्पिषी।