________________ ( 152 ) ही पिछले किये हुए कर्म करनेवाले को प्राप्त होते हैं। २-सीता ने राम से कहा--आर्य ! मैं फिर भगवती भागीरथी के पुण्य तथा स्वच्छ जल में डुबकी लगाना चाहती हूँ और पाश्रमवासी ऋषियों के दर्शन करना चाहती हूँ। ३-मैं उस भयंकर प्राकृतिवाले मनुष्य से जो मेरी ओर लपक रहा था डर गया। 4-- तुम संशय में क्यों पड़े हो ? सचाई को स्पष्टतया झटपट कहना चाहिये / ५जिसे तुम्हारी इच्छा हो वैसे ही करो। मैं तुम्हें बिल्कुल नहीं रोकूँगा। 6 उन्मार्ग में जानेवाला कभी अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँचा / ७-कच्चा दूध कुछ देर के बाद खराब हो जाता है। इसलिए इसे पकालो। ८--चपलता न करो, इससे तुम्हारा स्वभाव बिगड़ जायगा। ६-क्या समाचार है ? सुना है, तुम्हारा भाई आक्सफोर्ड में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये जा रहा है। 10-- तुम्हारे पिता अब क्या कर रहे हैं? मैं उनसे मिलना चाहता हूँ। ११-तुम भलेही सप्ताह में दो तीन बार चौर करानो या न करापो पर तुम्हें अपने. नाखून अवश्य काटने चाहिये / १२-क्या तुम स्वयं भोजन बनाते हो ? नहीं। मैं रसोइये से बनधाता हैं। 13. पापिन कैकेयी ने दम नहीं लिया जब तक कि राम को वन में नहीं भेज दिया। ___संकेत----४-किमिति विचारयसि ! सद्यो निर्वक्तव्यं सत्यम् / ७.-अतप्तमशृतं पयः कालान्तरं न क्षमते (अशृतं पयः कालेन दुष्यति=विकुरुते), तस्मात् श्रपर्यंतत् / यहां वि कृ अकर्मक है / अकर्मक वि कृ से प्रात्मनेपद ही होता है / अकर्मकाच्च (1 / 3 / 35) / 8 -मा चापलम्, विकरिष्यते ते शीलम् (दोक्ष्यति ते स्वभावः / दोक्ष्यति-दुष--लट / ) ६-का प्रतिपत्तिः ? (का वार्ता) श्रुतं मया भ्राता ते भूयोविद्यायै गोतीथं जिगमिषुरिति / १२--किं स्वयमेव संस्करोषि भक्षम् / न हि, सूदेन संस्कारयामि / अभ्यास ६१-दिन काम करने के लिये है और रात आराम के लिये, पर आज 1. अवगाहितुमिच्छामि / अवगाह, सकर्मक है। इसका जल अथवा भागीरथी कर्म होगा। पुण्यप्रसन्नसलिलां भगवती भागीरथीम् अथवा भगवत्या भागीरथ्याः पुण्यं प्रसन्न सलिलम् / सप्तमी का प्रयोग सर्वथा अनुपपन्न होगा। 2.-2 सम्प्रति किसमाचारास्ते पितृचरणाः ? 3-3. नखांस्त्ववश्यं कल्पयेः (करजांस्त्ववश्यं संहारयः)। 4. पापसमाचारा-वि० / ५-नाश्वसीत् / लङ् व लुङ् दोनों में समान रूप।