________________ ( 150 ) करोगे तो गर्दन तोड़ बैठोगे / ३-मैं कल मुँह अन्धेरै जाग उठा, और अपने मित्र / साथ पटेल पार्क में खुब घूमा। ४-हम भारत के उन महर्षियों के बहुत कृतज्ञ हैं, जिन्होंने संसार को सच्चाई और न्याय का मार्ग दिखाया / ५-अब खाने का समय है। भोजन के समय के लांघने में वंद्य लोग हानि बतलाते हैं / ६-उसका अपने आप पर कोई काबू नहीं, वह औरों को किस प्रकार संयम सिखा सकता है ? जो स्वयम् अन्धा है वह दूसरों को रास्ता नहीं बता सकता। ७-उन व्यक्तियों के पास जो कभी भी सदाचार के मार्ग से विचलित नहीं होते, सुख बिना ढूँढे स्वयमेव आरे उपस्थित होता है / ८-तुम किसकी आज्ञा से गये थे ? देखो, आगे को विना गुरु की आज्ञा कमरे से बाहुर मत जाओ / ६संस्कृत के अध्ययन में व्याकरण-ज्ञान उपयोगी है, इसमें हमारा मतभेद नहीं / पढ़ाई के ढंग में अवश्य भेद है। १०-महानगरों में कहीं तो बिजली के प्रकाश के कारण रातें भी दिन सी मालूम होती हैं और कहीं अन्धेरी कोठड़ियों के कारण दिन भी रातें मालूम पड़ते हैं। संकेत-१-मा त्वरिष्ठाः कालात प्रयास्यति रेलयानम् / तच्छक्ष्यामोऽधिरोढुम् / रेलयानं संगन्तुं पर्याप्तः कालोऽस्ति / यह अच्छी (सुन्दर) संस्कृत नहीं / तुमुन्नन्त का प्रयोग भी उचित नहीं / २–नाहं विश्वसिमि त्वं कुड्यमिदं लङ्घयेरिति, यदि प्रयतिष्यसे ग्रीवा ते भक्ष्यते / यहां 'त्वं स्वां ग्रीवां भक्ष्यसि' यह ऊपर के वाक्य की संस्कृत नहीं / संस्कृत में ऐसा कहने का ढंग नहीं / ६स्वयमयतात्मा स कथंकारमन्यान् विनयेत् ? य आत्मना चक्षुर्विकलः स नान्या. न्मार्गमादिशेत् / 8 -कस्यानुमतेऽगमः, नातः परं गुरुमननुमान्य बहिरगारं गमनीयम् / अगार प्रागार-दोनों रूप शुद्ध हैं। ह-संस्कृताध्ययने व्याकरणज्ञानमर्थवदित्यत्र न विसंवदामः, नेह नो नाना दर्शनम् (नेह नाना पश्यामः, नेह नो मतद्वधमस्ति)। अध्ययनविधायां तु विप्रतिपत्तिरस्ति / १०–महानगरेषु क्वचिद्वैवं तः प्रकाश इति दिवामन्या रात्रयः, क्वचिदप्रकाशानि गृहाणीति रात्रिम्मन्यान्यहानि। 1. महति प्रत्यूषे, अनपेते नैशे तमसि / 2. अयाचितमेव प्रमागितमेव, अमृगितमेव / 3. उपनमति (तान्, तेभ्यः, तेषाम्) / यहाँ तीनों विभक्तियों का प्रयोग शिष्ट व्यवहार-संमत है। देिखिये-पाणिनि का सूत्र "कालसमयवेलासु तुमुन्" / 3 / 3 / 167 / / उसके अनुसार 'वेलेयं पाठशालां गन्तुम्' का 'पाठशालागमनस्येयमुचिता वेला' ऐसा अर्थ होता है।