________________ ( 144 ) यद्यनं रोचयसि रूप्यकदशकेन क्रेतुमर्हसि / १४-अस्ति मे पारिणाह्य वाह्य वह्य नास्ति / १५-प्रभूताः स्वा दुर्दानाः, चिरातीता अर्था दुर्ज्ञानाः। १७वंच्यं वंचन्ति वणिजः / १८--मेघोदरविनिर्याताः कर्पूरदलशीतलाः / शक्यमंजलिभिः पातुं वाताः केतकगन्धिनः / यहाँ शक्य का नपु० एक० में प्रयोग सामान्य उपक्रप के कारण हुआ। चतुर्थों ऽशः प्रकीर्णक ( विविध वाक्य ) अभ्यास--१ १-देवदत्त को पिछले बरस अपने विवाह के अवसर पर भारी सम्पत्ति दहेज में मिली, जिससे उसे 'मैं भाग्यवान हूँ' भ्रम हो गया। २-स्वामी का अपने नौकरों के प्रति आदर न केवल उनका उत्साह बढ़ाता है, स्वामी के प्रति भक्ति को भी। ३-लोभ को बढ़ने न दो। लोभ' से प्रेरित होकर मनुष्य न जाने क्या 2 पाप करता है। 4- अाज के सुख के अनुभव को कल तुम दुःख से याद करोगे। अतः तुम स्वप्न रूप अभिलाषाओं के शिकार न बनो। ५सौन्दर्य प्राप्त करना आसान है, परन्तु गुणों को पाना कठिन है। 6-+ पराधीन पुरुष प्रीति के रस को कैसे जान सकता है ? 7- इतिहास इस बात का साती है कि सुन्दरता को सोने की अपेक्षा चोरों को अधिक प्रेरित करती है। ८-जल्दी गुस्सा करने वाले (लोग) भयंकर होते हैं। 8-मैं अपने दुःखों को कैसे घटाऊँ, और सुखों को कैसे बढ़ाऊँ ? १०--तंग किया हुआ साँप अपना फण दिखाता है। ११-सुनार सोने को कसौटी पर परखता है (कषति) / १२-छोटा और महत्वपूर्ण भाषण ही वक्तृता है / १३-ब्रह्मचारी को सजावट के लिए कोई वस्तु धारण नहीं करनी चाहिये और चन्दन आदि से अङ्ग संस्कार का परिहार करना चाहिए। १४-दर्जी 3 ! यह कोट मुझे ठीक नहीं बैठता इसे ठीक कर दो 3 / १५-प्राश्चर्य है वह नाकोदर से प्रभात समय 1. लोभप्रयुक्त, लोभाकृष्ट-वि० / 2. रुच्यर्थम् / 3-3. तुन्नवाय ! अयं चोलको ममांगेषु न साधु श्लिष्यति / सोऽयं समाधीयताम् /