________________ ( 142 ) १३-यह मनुष्यों की सभा नहीं, किन्तु पशुओं का संघ है / १४-मेरे शरीर में कंपकपी है और मेरी त्वचा (चमड़ी) जल रही है। १५-विद्या से भूषित दुर्जनों का भी त्याग करना चाहिये और वाणी मात्र से भी उनका आदर नहीं करना चाहिए। 16- जिन घरों को निरादर की गई स्त्रियां शाप देती हैं, वे इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे मानों जादू से नष्ट किये गये हों। १७-+भयानक तथा आकर्षक राजगुणों से युक्त वह (राजा) अपने आश्रितों के लिये जल और रत्नों से युक्त सागर की तरह अवहेलना के अयोग्य-पर सहज में पहुँचने योग्य था। १८-शिब्द और अपशब्द से अर्थबोध के समान होने पर भी शब्द से ही अर्थ को कहना चाहिये, अपशब्द से नहीं। संकेत-१-त्वया पर्युषितं शुक्तं च न भोक्तव्यम् / इदं हलसतां जनयन्नामयति भोक्तारम् / २-ऐतिहासिकेन तथ्यमेवोत्तमं समादरणीयम्, न त्वर्थान्तरम् / इति. हासं वेद-ऐतिहासिकः / ४-सन्ति बहूनि क्रय्याणि विपण्याम्, न तु बहु क्रेयमस्ति / ६-अजयं नौ संगतं स्यात् / ६-कार्यान्तरान्तरायमन्तरेण त्वया प्रातस्तत्र संनिधानीयम् / १०-अलमतिविस्तरेण, समासेनोच्यताम् / ११-अस्यागारस्यायाम विस्तारं च तावदवगच्छामि, कियानस्योच्छ्राय इति न वेनि / यद्यपि 'उच्छ्रयः' शब्द कहीं-कहीं मिलता है, परन्तु यह व्याकरण सम्मत नहीं। 'विस्तर' (=शब्द प्रपंच) के स्थान में 'विस्तार' (व्यास-चौड़ाई) का व्यवहार नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार 'अवतर' (-उतराव) के स्थान में 'अवतार' (घाट, मानुषदेह में प्राविर्भाव) का प्रयोग प्रसाधु होता है / १५-विद्यासंस्कृता अपि दुर्जनाः संचक्ष्याः, याङ्मात्रेणापि च नााः / सम्पूर्वक वर्जन अर्थ में चक्ष को प्रार्धधातुक प्रत्यय परे होने पर ख्याल् प्रादेश नहीं होता। अभ्यास-.२५ (कृत्य और अन्य कृत् प्रत्यय ) १-अहिंसा का प्रभाव अजय्य है। हर प्रकार से हर समय हर एक प्राणी को हानि न पहुंचाने की इच्छा ही अहिंसा है। २-भोजन से ठीक पहले तीन बार आचमन करना चाहिये। भोजनोत्तर तीन बार मुंह पोंछना 1--1. नायं नृणां समाजः, समज एष पशूनाम् /