________________ ( 145 ) चला हुअा जालन्धर में सूर्य का दर्शन करता है। 16 -सबेरे और शाम दोनों समय का सैर प्रायु को बढ़ाता है इसमें किसे सन्देह है ? संकेत-१-देवदत्तः परदात्मन उपयामे महद्योतकं प्राप्नोत् (महान्तं सुदायमविन्दत) / येनासौ कृतिनमात्मानमभ्यमन्यत / अभि मन् का अर्थ 'मिथ्या मानना' भी है / सुदाय और दाय के अर्थ-भेद को जानो / २-प्रभोराश्रितेष्वादरः (स्वामिनो भृत्येषु संभावना) तदुत्साहाय भवति स्वामिन्यनुरागाय च / ७-रूपं यथापहत न् प्रेरयति न तथा हिरण्यम् / ६-कथमहमात्मनो दुःखमपर्षामि सुखं च प्रकर्षामि / १५-प्रभाते नाकोदरात् प्रस्थितो जालन्धरनगरे सूर्यमुद्गमयति ! यहां प्राश्चर्य को कहने के लिये किसी पद के प्रयोग करने को आवश्यकता नहीं। १६प्रायुष्यः सायम्प्रातिको विहारः, कोऽत्र सांशयिकः ? संशयापन्नमानसः सांशयिकः / अन्यत्र 'सांशयिक' संशयास्पद अर्थ को कहने के लिये भी आता है- . सांशयिकस्तृतीयः पादः (निरुक्त)। अभ्यास-२ १-तुम इन पुस्तकों में से अपनी इच्छा के अनुसार किसी एक पुस्तक को ले सकते हो / २-उसे सुख पाने की इच्छा है, पर इसे पूरा करने के साधन नहीं हैं / ३-मुझे इस चोरी से कुछ काम नहीं / मेरे शत्रुओं ने मुझ पर मिथ्या दोष लगाया है। ४-हमें इस (बात) पर नहीं झगड़ना चाहिये, इससे हम किसी निर्णय पर नहीं पहुँचेंगे। ५-तुम्हें असफलता के लिए प्रौरों पर दोषारोपण नहीं करना चाहिये। अपने में दोष हूँढ़ना चाहिये / ६-कल मैंने अपने मित्र को भोजन के लिये निमन्त्रित किया था। ७-यदि यह कोरे आदरसत्कार की भाषा नहीं तो यह कैसे हो सकता है कि रति यहां सुरक्षित रहे और तुम राख का ढेर बन जानो। इस प्रकार रति ने कामदेव की मृत्यु पर विलाप करते हुये कहा / ८-वह अपने सादे पहरावे से छात्र मालूम होता है और कमंडल से भी / -यदि तुममें शिष्टाचार नहीं तो केवल मात्र परीक्षा पास कर लेने से क्या प्रयोजन ? १०-वे मूर्ख हैं जो दूसरों की उन्नति में डाह (ईर्ष्या) करते हैं। उन्हें सुख का अनुभव नहीं होता। ११-उसने साहस करके अपने प्रापको विषम परिस्थिति से बचा लिया / 12- मैंने गुरु से अभिनय-विद्या 1-1. छन्दतः, यथेच्छम् / 2-2. सुखेप्सा, सुखलिप्सा। 3. निवर्तयितुम्, सम्पादयितुम्, साधयितुम्, राद्धम्, साद्धम् / ४-सवृत्त, सौजन्य, सोशोल्य-नपुं० / 5-5. साहसमास्थाय / 6-6. संकट-नपुं० / 7. तीर्थ-पुं०, नपुं० / 10