________________ ( 62 ) ने सीता को विश्वास दिलाया कि यह राम की आवाज नहीं है / १०-ठण्डी वायु कई वृक्षों के फलों को पका देती है और कई बेलों को मुरझा देती है। ११-मन्त्री ने शत्रु के यहाँ से आए हुए पत्र को पहले स्वयं पढ़ा और पीछे महाराज को सुनाया। १२-सीता ने तालियाँ बजा-बजा कर अपने प्यारे मोर को नचाया। १३-राजा ब्राह्मणों को सभा में बुला और उनकी प्रतिष्ठा कर कोषाध्यक्ष से उन्हें धन दिलाता है / १४-गायनाचार्य ने लड़कियों का गाना शुरू कराया। १५-विश्वामित्र ने राम का जनक की पुत्री सीता से विवाह कराया / १६-सम्राट अशोक ने यात्रियों के आराम के लिये सड़कों पर जगह 2 कूएँ प्याऊ और फलवाले वृक्ष लगा दिये, और सरायें बनवा दी। १७-सेनापति ने राष्ट्र के नवयुवकों को आनेवाले संकटों से सचेत किया और सेना में भरती होने की जोर से प्रेरणा की। १८-मैं जुलाई से एक चादर बुनवाऊँगा और दरजी से एक चोला सिलवाऊँगा। १६-आप अपने भाषण को समाप्त कीजिये, श्रोतृगण ऊब गये हैं। __संकेत-२--सविता पङ्कजान्युन्मीलयति (विकासयति, व्याकोचयति, बोधयति ) कुमुदानि च निमीलयति(संकोचयति)। ४--धर्मात स्वामिनं भत्याः शिशिरैर्वारिभिः (हिमाभिरद्भिः) स्नपयन्ति (स्नापयन्ति, प्रस्नापयन्ति) / ७-सुरा सुरापानं ( सुरापाणम् ) पुरुषमुन्मादयति, तस्य पदानि स्खलयति, नयने च घूर्णयति / १४--संगीताचार्यो दारिकाभिर्गानमारम्भयत् / ( दारिका अगापयत्) / १५--कौशिको (गाधिसुतः) रामेण सीतां पर्यणाययत् / १७–सेनानी राष्ट्रयुवजनमेष्यतीभियः प्राबोधयत् सेनां च समवेतेति च प्रेरयत् / सेनानी: ऐसा प्र० ए० रूप है। ‘रो रि' से र का लोप हुआ है / सेनाम् यहाँ द्वितीया का प्रयोग समवायान्समवैति (४-४-४३)इस सूत्र के आधार पर किया गया है / १८--अहं तन्तुवायेन (कुविन्देन) बृहतिकां वाययिष्यामि, तुन्नवायेन (सौचिकेन) च चोलकं कूर्पासकं सेवयिष्यामि / १६--अवसायय सपदि स्वा गिरः, उद्विजन्ते श्रोतारः। वाचयत् / ५--अवाचयत् / वाचन और अनुवाचन के अर्थों में यही भेद है / 6--6 कोषाध्यक्षेण तेभ्यो धनं दापयति / 7--7 उदपानानि प्रपा पावसथांश्च निरवर्तयत् फलिनः शाखिनश्वारोपयत् / 'उदपानं तु पुंसि वा' इस अमरवचन के अनुसार 'उदपान' पुल्लिङ्ग भी है।