________________ (61 ) संकेत-णिजन्त क्रियाओं को प्रेरणार्थक' भी कहते हैं। इन क्रियाओं में 'प्रेरणा' णिच् प्रत्यय का वाच्यार्थ है। जब कोई अन्य व्यक्ति 'कर्ता' को अपने काम में प्रेरणा करता है तो धातु से णिच प्रत्यय आता है / णिच् सहित धातु की भी धातु संज्ञा ही होती है। जैसे-रसोइये को मेरे लिये चावल पकाने को कहो—'सूदेन ममौदनं पाचय / सूदं प्रेरय ममोदनं पचेति / ' यह दूसरी वाक्य-रचना यद्यपि सरल है, तथापि णिजन्त का स्थान नहीं ले सकती, विषय भेद होने से / जहाँ क्रिया करते हुए पुरुष ( कर्ता ) की प्रेरणा की जाती है वह णिच का विषय है। जहाँ क्रिया में अप्रवृत्त पुरुष को प्रवृत्त कराना होता है वह लोट वा लिङ का विषय है / अतः प्रोदनं पाचयति देवदत्तेन यज्ञदत्त:-यहाँ 'पचन्तं देवदत्त प्रेरयति इति पाचयति' ऐसा विग्रह संगत होता है। कई बार हमें अकर्मक धातुओं से सकर्मक क्रिया का दोष कराने के लिये णिजन्त का प्रयोग करना पड़ता है। जैसे-वह रात दिन तप द्वारा अपने शरीर को क्षीण कर रही है / "साऽहनिशं तपोभिलपयति गात्रम् / " यहाँ 'ग्लपयति' अकर्मक क्रिया 'ग्लायति' का णिजन्त प्रयोग है / ७-मुनिपुङ्गवाः फलेः कन्दैश्च शरीरं यापयन्ति (वृत्ति कल्पयन्ति ) / १२-राजन् यदि सत्यसन्धोऽसि, अद्येव रामं वनं प्रव्राजय / अभ्यास-३६ (णिजन्त) 1-* वस्तुओं को कोई आन्तरिक कारण (परस्पर )मिलाता है / प्रेम बाहिरी कारणों पर आश्रित नहीं। २–सूर्य कमलों को विकसित करता है और कुमुदों को बन्द कर देता है। ३–पम्पा का दर्शन मुझ दुःखी को भी सुख' का अनुभव कराता है'। ४-नौकर घाम से सताए हुए स्वामी को ठण्डे जल से स्नान कराते हैं / ५-पुरोहित अग्नि को साक्षी करके वधू का वर से मेल कराता है / ६–वसन्त में कोयलों का कलरव घर से दूर गये हुए पुरुषों के मन को उत्सुक बना देता है / ७-मदिरा पान पुरुष को उन्मत्त कर देता है, उसके पैरों को लड़खड़ा देता है, और आँखों को घुमा देता है / ८-राजा ने द्वारपाल को कवियों को अन्दर लाने की आज्ञा दी। ह-लक्ष्मण 1-1 सुखयति / मां सुखमनुभावयति / 2-2 अग्नि साक्षिणं कृत्वा / 3-3 विप्रोषित-वि० / 4-4 उत्सुकति /