________________ ( 125 ) वाले बहुत नहीं होते। 6-* तुम्हें यक्षेश्वरों की अलका नामक नगरी को जाना है। इसलिए मेघदूत में बताये हुए मार्ग का आश्रयण करना। ७-पिता ने पुत्र को कहा--बेटा, तुम लोकव्यवहार से अनभिज्ञ हो। 8-* विद्वान् लोग बड़े-बड़े शास्त्रों को कण्ठस्थ किये हुये और संशयों को छिन्न-भिन्न करने दाले लोभ से मोहित होकर कष्ट पाते हैं। 8-~मैं दिन में एक बार नहाता हूँ, दो बार भोजन करता हूँ और तीन बार सैर सपाटा करता हूँ, ताकि मेरा स्वास्थ्य ठीक रहे। 10-* अंग को काट डालना, जला देना, घाव से रक्त निकाल देना ये अभी अभी डसे हुए लोगों की आयु बचाने के उपाय हैं। संकेत-२-नित्यो गीतानामध्यायोऽध्यात्मोन्नतयेऽतिमात्रं हितः / संस्कृतसाहित्य में 'गीता' शब्द बहुवचन में प्रयुक्त होता आया है। गीता के एकवचनांत आधुनिक प्रयोग की शिष्ट व्यवहार पुष्टि नहीं करता। वस्तुतः 'गीता' का 'उपनिषदः' अनुक्त विशेष्य समझना चाहिए। 3-* लोको हि स्वस्य भाग्यस्य निर्माता (लोको हि स्वं भाग्यं स्वयं निर्मिमीते)। ५-न हि परगुणानां विज्ञातारो बहवो भवन्ति / ७-पुत्र ! लोक-व्यवहाराणामनभिज्ञोऽसि / अभ्यास-१३ ( सप्तमी कारक-विभक्ति ) 1-* विपत्ति में धीरज, सम्पत्ति में क्षमा, सभा में वाणी की चतुराई, युद्ध में विक्रम, यश से प्रेम तथा वेद में लगन-ये सब महात्मानों में स्वभावसिद्ध हैं। २-श्री राम अपनी सन्तान की भाँति प्रजा का पालन करते थे। प्रतः प्रजा उनमें अनुरक्त थी। ३-इस प्रकार के प्राचरण की तुम से सम्भावना न थी। तुमने नीचों ( प्राकृत, पृथग्जन ) का सा व्यवहार क्यों कर किया ? 4-* राजा से भषपविक्रय की सम्भावना कौन कर सकता है ? ५-मैं यह मुद्रिका अपने पुत्र को अर्पण कर दूंगा। अब यह मुझे शोभा नहीं देती। ६-उसने अपने पुराने मित्र देवदत्त के पास 3 200 1. क्लिश्यन्ते (दिवादि० अकर्मक) / 2. भाव में घञ् / अकर्तरि च कारके संज्ञायाम्य हाँ संज्ञाग्रहण प्रायिक है। करण वा अधिकरण में निपातित 'अध्याय' का अर्थ 'वेद' है / 3-3. देवदत्ते ( सामीपिकमधिकरणम् ) /