________________ ( 123 ) के कारण क्रोष करता है। २०-मैं तुम्हें नहीं बता सकता कि भूमि को सूर्य के चारों ओर घूमने में कितना समय लगता है। २१-मैं' ईश्वर की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि यह दोष मेरे ऊपर झूठमूठ ही मढ़ा जा रहा है। २२-जो कुछ रुपया पैसा उसके पास था, वह सब उसने गरीबों में बाँट दिया ( दरिद्रेम्यो म्यतारीत् ) / 23-* जल से तृप्त पुरुष को शीतल सुगन्ध युक्त जलधारा अच्छी नहीं लगती। संकेत-२-राजनियुक्तः प्रायेण लिपिकरैरध्युषितं लवपुरम् अमृतसरसं च नैगमैः / ३-सीतारामी पुष्पकाख्येन विमानेन लडातोऽयोध्यामावर्तेताम् / यहाँ विमान अधिकरण होता हुमा भी कर समझा जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक वाहन के विषय में समझो / एवं शरीर का प्रत्येक अंग वाहन समझा जा सकता है / इसलिये यहाँ सप्तमी का प्रयोग उचित नहीं। इस विषय में 'विषयप्रवेश' में कारक प्रकरण देखो। 'पुष्पकास्येन' में णत्व नहीं होगा। १२-कवयो जरां प्रदोषेणोपमिमते। १३-तेभ्यः पुराणेभ्यो मुनिभ्यो बहमानं धारयामो ये मनुजमात्रस्य कारणादाचारपद्धति प्राण्यन् / २०-कियता कालेन तितिरादित्यं परित प्रावृत्ति निवर्तयतीति नाहं ते निर्वक्तुमर्हामि / अभ्यास-११ ( पचमी कारक-विभक्ति) १-वह एक बहुत अच्छा घुड़सवार होते हुए भी घोड़े से गिर पड़ा, क्योंकि वह पण भर प्रमत्त हो गया। २-सज्जनों को पाप से घृणा है, और पुण्य में प्रीति है। इसमें स्वभाव ही कारण है। ३-तू स्वाध्याय (वेद पाठ) से प्रमाद मत कर। स्वाध्याय ही ब्राह्मण के लिए परम तप है। 4-* विघ्नों से सताये हुए वे अपने कार्य से हट जाते हैं। 5-* ब्राह्मण विष के समान सम्मान से सदा डरे और अमृत की तरह अपमान को चाहे / 6-* इस धर्म का थोड़ा सा भी अंश बड़े भय से बचाता है। यहाँ प्रारम्भ किया हुमा व्यर्थ नहीं जाता और न करने से पाप भी नहीं लगता। 7-* अब मैं असत्य से सत्य को प्राप्त होता हूँ। ८--चोर सेंध लगा कर चौकीदारों से छिप - 1-1 ईश्वरेण शपे / इस प्रकार की शपथ अनार्यों के सम्पर्क से प्रार्यों में भी संक्रांत हो गई है / पहले तो सत्य आदि की शपथ होती थी। देखो मनु० 'सत्येन शापयेद्विप्रम्' इत्यादि / २-जुगुप्सन्ते / 3-3. सन्धि छित्त्वा / 4. प्रहरिन् /