________________ ( 136 ) स्त्रियों और असहाय लोगों पर हाथ नहीं उठा सकते / २१-इसे 2 भूख नही लगती, इसके लिये कांजी ठीक होगा २२-वह बैल सांड़ बनने के योग्य है / गोपाल को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये / २३-'गोमिन्' का मूल में 'गौओं वाला' अर्थ था और गोधन के कारण भारत में लोगों का मान होता था, अतः कालान्तर में 'गोमिन्' 'पूज्य' अर्थ में प्रयुक्त होने लगा / २४-अध्यापक की अनुपस्थिति में ये विनय-रहित विद्यार्थी ऊधम मचा रहे हैं / २५-रात के गाढ़ अन्धकार में चलते हुए (उनके) पर लड़खड़ा जाते हैं। २६-हम एक देश के रहनेवाले हैं, पर एक गांव के नहीं। संकेत-३-यद्यपि कालिदासः शवोऽभूत् (शिवभक्तिरभूत्), तथापि नासावसहनः स्वपक्षानुगामी / मतावलम्बी के लिये कई लोग 'साम्प्रदायिक' शब्द का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह भ्रमात्मक है। साम्प्रदायिक का अर्थ (सम्प्रदायाद् प्राम्नायाद् आगतः) 'सम्प्रदाय से प्राया हुआ है। इसका अच्छे अर्थ में प्रयोग होता है / जैसे-हम कहते हैं-"साम्प्रदायिकः पाठः" / आधुनिक पाठ को आगन्तुक कहते हैं और वह निष्प्रमाण होता है। ४-कियन्मात्रं पयः ! जानुमात्रम् (जानुद्वयसम्) / 'जानुदघ्नम्' यह पूर्णतया शुद्ध प्रयोग नहीं / भाष्यकार ने ऊंचाई के मापने में 'दनच्' प्रत्यय का निषेध किया है / ८-मेधावी क्षिप्रं स्मरति चिरं च धारयति / १४-प्रश्वमेधोपस्थानाथं कुशलवयोः प्रास्थानिकानि कौतुकानि व्यतानीत् सीता / १५-अभ्यागारिक एष तपस्वी कार्यान्तराण्यात्ययिकान्यपि कतुं कालं न लभते / १७-नास्य जन्मनः खालित्यम् / इदं हस्येन्द्रलुप्तकं कालिक्या रुजः समजनि / यद्यपि भाव में ष्यन् परे होने पर 'खालित्य' में 'इ' दुर्लभ है, तो भी चरक में ऐसा पाठ पाने से यह इकार सहित पाठ शिष्टसंमत है ऐसा जानना चाहिये / २५-सूचिभेद्य नैशे तमसि गच्छतां नः पदानि विषमीभवन्ति / २६-बाढं समानदेशिका वयं न तु समानग्रामिकाः! अभ्यास-२३ (तद्धितप्रत्यय) १-शकुन्तला का पुत्र भरत शक्तिशाली राजकुमार था। इसी के नाम में इस देश को 'भारतं वर्षम्' कहने लगे। २-उसका भतीजा इस साल मध्य प्रदेश में संस्कृत की एम० ए० की परीक्षा में प्रथम रहा / ३-गरमी में कई 1. स्त्रैण-नपुं० / 2-2. अरोचकिनेऽस्मै सौवीरं हितम् / 3-3. पार्षम्यः। 4-4. साराविषं कुर्वते / अभिव्यापकः संरावः सांराविणम् / इनुण / अण् /