________________ ( 137 ) समय में अतितीव्र वायु के संस्पर्श से कांपता हुआ तथा प्रोले 2 बरसाते उमड़ते हुए बादलों की धाराओं के प्रहार से ताड़न किया गया बन्दरों 3 का झुण्ड किसी प्रकार भी शान्ति न प्राप्त कर सका। -फिर उस शमी के कोटर के जलने पर प्राधे जले शरीरवाला तथा फूटी हुई आंखोंवाला अति दीनता से रोता हुमा पापबुद्धि का पिता (उस कोटर से) बाहर निकल पाया। १०-इस धोतो का ताना और बाना४ दोनों ही हाथ से काते हुए सूत५ का है। ११-प्रभो६ अभी सूई हुई गौ के तीर को 'पीयूष' कहते हैं / स्त्रियों को यह प्यारा होता है / १२-+हे देवि ! कड़कती हई भुजामों से घुमाई हुई गदा की चोटों से चूर चूर की हुई जंघोंवाले दुर्योधन के जम कर लगे हुए घने रुधिर से लाल हाथोंवाला भीम तेरे बालों को बांधेगा। १३-ये वही गगन-चुम्बी चोटियोंवाले बर्फ से ढके हुए पहाड़ है, जहां नित्य सोते बहते हैं, जिनसे सैकड़ों झरमों और नदियों के शब्द के कारण दिशाएँ गूंज रही हैं, जो सुवर्ण रजत आदि धन को गोद में लिये हुए हैं, जिनकी ऊँची भूमियां अनेक हाथियों के झुण्डों से भरे हुए जंगलों से श्याम हो रही हैं, जिनकी विशाल हरी-भरी तराइयां हैं और जिन्होंने आक्रमणकारियों के उद्योग की रोक-थाम की है। अभ्यास-२२ (तद्धितप्रत्यय ) 1- वायु निश्चय से शीघ्रतम चलनेवाला देवता है। २-आज सफलता निकटतर है / कल' का पता नहीं। ३-यद्यपि कालिदास शिव का भक्त था, 1-1. अतिकठोरवातसंस्पर्शवेपमानकलेवरम् / 2-2. तुषारवर्षोद्धतघनधारानिपातसमाहतम् / 3-3. वानरयूथम् / 4. तानवाने / 5. हस्तकृत्तसूत्रस्य / 6-6. नवप्रसूतगवीतीरम् / नवप्रसूतगवी- यहां 'गोरतद्धितलुकि' से टच समासान्त हुआ है / पीयूष (पेयूष) इस अर्थ में पुंल्लिङ्ग है। 7-7. योषिप्रियः, प्रिययोषः / 8-8. त एवते सततस्रवत्प्रस्रवणाः परश्शतनिरनिझरिणीध्वानध्वनितदिगन्तरालाः, क्रोडीकृतसर्वाकुप्यवसवः, अनेकानेकपयूथसंकुलसान्द्रकान्तारमेचकितसानवः, पृथुशाद्वलद्रोणीकाः, कृताभिघातिप्रक्रमभङ्गाः, गगनोल्लेखिशिखरा हिम्याः शिखरिणः / 6-6. प्रद्य नेदीयसी सिद्धिः (अद्य सिद्धिरुपस्थिता) / प्रायतो क आश्वासः /