________________ ( 128 ) को दुबारा स्थान नहीं देता और दुबारा वचन नहीं कहता / ८-उससे यह वियोग तो एकाएक (एकपदे) (सपदि अकस्मात्) आ गया (उपनत) है / ६-वह अच्छा बोल रहा है, इसको बीच में (अन्तरा) मत टोको (रोको)। १०-वह शत्रुओं से घिर गया था। उसे बहत कठिनता से (कथंकथमपि) बचाया गया। 11-* प्रायः' समान विद्यावाले एक दूसरे के यश को नहीं सहते / १२-*राजाओं को तिनके से भी काम पड़ता है, फिर वाणी और हाथ से युक्त मनुष्य का तो क्या कहना (किमङ्ग) / १३-चपरासी प्रतिदिन (अनुदिनम्) प्रातःकाल छः बजे घंटी बजाया करता है / १४-वह भले ही प्राणों को छोड़ दे, पर शत्रु के आगे न झुकेगा। १५-वह इतना चुलबुला लड़का है कि एक क्षण भी निचल्ला नहीं बैठ सकता / १६-कुओं जितना अधिक गहरा होगा, उतना ही पानी ठण्डा और मीठा होगा / १७-वह इतना (एतावत्) थका और भूखा कि घर पर पहुँचते ही अधमरा होकर जा गिरा। १८-मैं उसे अपना प्यारा मित्र समझता है, पर (पुनर्) 2 वह मुझे शत्रु की दृष्टि से देखता है। १६-अभी३ जाइये 3 और महाराज से कह दीजिये कि महारानी को झूला झूलते समय सिर में सख्त चोट पाई है। संकेत-३-अयि ! नार्हसि प्रणयं मे विहन्तुम् / ४-यावदेवाहं तत्रागां तावदेव बृत्तमनुसमधाम्-अबुधं चाभियुक्ता अनागस इति / अनुसमधाम्-अनु-सम्-धामङ् उ० पु० एक० / ६-कामं दुर्बलोऽस्मि, तस्मात्त्वभ्यधिकोऽस्मि / ९-एष साधु भाषते (देशरूपं ब्रवीति, वदतिरूपम्), मैनमन्तरा प्रतिबधान। १४-कामं प्राणान् जह्यात्, न पुनरसौ शत्रोः पुरतो वैतसीं वृत्तिमाश्रयेत् / १५–स तथा चपलः कुमारो यथा क्षणमपि निश्चलं न तिष्ठति / प्रभ्यास-१५ (अव्यय, निपात ) १-*पिछले बरस. (परुत्) आप चतुर थे, और इस बरस (ऐषमस्) अधिक चतुर हो गये हैं / २-पिछले बरस (परारि) गया हुआ १-'प्रायस्' सकरान्त अव्यय है / 'प्राय' अकरान्त पुं॰ नाम भी है / इसका प्रयोग तृतीया अथवा पंचमी में होता है-प्रायेण, प्रायात् / / 2. पुनर् वाक्य के आदि में प्रयुक्त नहीं होता / 3--3. अभितो गच्छ /