________________ ( 133 ) परोंवाले व्यक्ति को पृथ्वी निश्चय ही चमड़े से ढकी हुई सी मालूम होती है। ४-स्वामी जो अपने नौकरों को प्रसन्न करता है, सुख पाता है / ५-मथुरा नगरी यमुना के किनारे के साथ-साथ बसी हुई है और बनारस गङ्गा के / ६-यह सभा प्रायः विद्वानों से पर्ष है. तो किस नाटक को खेल कर हम इसे प्रसन्न करें। ७-मेरी प्रजाएं रोग रहित और साधारण दैवी आपदाओं से रहित हैं / ८तुम्हें मार्ग के बीच में नहीं खड़ा होना चाहिये / ऐसा न हो तुम गाड़ी से टकरा कर गिर जानो। -प्रिय मित्र ! तुम पहले की तरह मेरी ओर प्रेम भरी दृष्टि से क्यों नहीं देखते ? १०-वह तुम्हें धोखा दे यह बात कल्पना' से परे है। ११-वह समय से पूर्व बूढ़ा हो गया है, उसके बाल सफेद हो गये हैं और दांत गिर गये हैं / 12- तपस्या को धन माननेवालों के लिए तप ही श्रेष्ठ है / १३काश्मीर में स्वच्छ जलवाले कई तालाब हैं, जहाँ पेट के रोगों से पीड़ित जल सेवन से नीरोग हो जाते हैं। १४-हरि वरुण और यम तथा चन्द्र और सूर्य तुम्हारी नित्य रक्षा करें। १५-सब इन्द्रियों के विषय की चाह से विमुख मुझ अस्सी' (80) बरस के व्यक्ति को धन से क्या काम ? १६-गुरुजी के सौ से ऊपर शिष्य हैं और सभी बुद्धिमान् (सुमेधस्) हैं। १७-इस बच्चे को जन्मे छः मास हुए हैं, इसमें अपूर्व ही चुस्ती है। संकेत-१-सोऽनवहितः स्वे शरीरे (स मन्दादरः स्वे शरीरे)। दूसरे वाक्य में आदर का सम्बन्ध यद्यपि 'शरीर' से है, अर्थात् 'शरीर' के प्रति सापेच है, अत एव असमर्थ है, फिर भी इसका 'मन्द' से समास हुआ है। ऐसा करने पर भी जहाँ अर्थप्रतिपत्ति निर्बाध होती है, वहां दोष नहीं माना जाता, जैसा कि शिष्ट-व्यवहृत प्रसिद्ध वाक्य "देवदत्तस्य गुरुकुलम्" में असामर्थ्य होने पर भी गुरु शब्द का समास कुल के साथ होता है। ५-अनुयमुनं मथुरा, अनुगङ्गं वाराणसी। ८-न त्वया मध्येमार्ग स्थानीयम्, नो चेद्यानेनावपातयिष्यसे (यानाघातेन निपातयिष्यसे) / ११-स युवजरन्भवति (अकाले परिणतोऽसौ), पलितास्तस्य केशाः२ प्रपतिताश्च दन्ताः / १४-प्रादित्यचन्द्रौ (दिवाकरनिशाकरी)। -- 1.-1. कल्पनापोढम् / २--केश, कच, कुन्तल, शिरोरुह, मूर्धज-पु० / ३-उदय रोगरार्ताः / ४-अशीतिवर्षः, अशीतिहायन: / इनका विग्रह इस प्रकार है-प्रशीति वर्षाणि भूतः / प्रशीतित्यनाः प्रमाणमस्य वयसः /