________________ ( 132 ) की बात है (दिष्टया) कि महारानी ने आपको क्रोध के बहाने बचा लिया है। 11- मैंने तो निश्चय ही (नाम) मुग्ध चातक के समान (इव) सूखे जल रहित बादलों की गर्जवाले, प्रकाश में जलपान चाहा / 12- लेख के द्वारा बात के निर्णीत हो जाने पर वाणी द्वारा सन्देश' से कुछ काम नहीं (खलु / 13-* सम्भावना है (किल)२ अर्जुन कौरवों को जीत लेगा। १४-चुपचाप (जोषम्) बैठो। हर एक अपने-अपने काम में लग जायो / १५-क्यों जी (ननु) ? मैं अपने मित्र से सहायता मांगू ? वह बुरा तो नहीं मानेगा ? १६-देवदत्त ! तूने चटाई बना ली ? अजी हाँ ! बना चुका हूँ। १७-कुशिक्षित बार-बार बोलता है। विद्वान् सभाओं में ठीक-ठीक कहता है / मूर्ख असंगत बोलता है / १८-अच्छा / (भवतु) मैं इस बात को छिपाता हूँ और इसका मन दूसरी ओर खींचता हूँ। १६-*तू बहुत (बाढम्) बोलता है, तेरे मुँह में लगाम नहीं। २०-*गदा हाथ में लिये हुए भीम युद्ध में क्रोध में आये हुए सांप की तरह (वा) बादलों में से निकले हुए सूर्य की तरह (वा) और यम की तरह (वा) दिखाई देता था। संकेत-४-न च सुकरं कार्य, परिक्षीयं चास्या बलम् / ६-वितर गिरमुदारां येन मूकाः पिकाः स्युः / १३-अर्जुनः किल विजेष्यते कुरून् / यहाँ 'किल' का अर्थ 'सभावना' है / 'वार्तासंभाव्ययोः किल'-अमर / १४-जोषमाध्वम् प्रास्ध्वम् / यूयं प्रत्येकं यथायथं (यथास्वम्) कर्मणि व्याप्रियध्वम् / १५-ननु सखायं साहायकं याचे, कच्चिन्न कोपिष्यति ? १६-अकार्षीः कटं देवदत्त ! ननु करोमि भोः / यहाँ लुङ् के स्थान पर लट का प्रयोग विशेष अवधेय है 'ननौ पृष्टप्रतिवचने' (3 / 2 / 120) / १७-शश्वद्वक्ति कुशिक्षितः / यथातथं वक्ति सभासु विद्वान् / विषमं वक्ति मूर्खः / १८-भवत्वन्तरयामि / मनोऽस्यान्यत आक्षिपामि / अभ्यास-१८ . (समास ) १-वह अपने शरीर का कुछ ख्याल नहीं करता / पीछे पछतायेगा। २-वह ठोस अंगोंवाला, विस्तृत छातीवाला' और लम्बी भुजाओंवाला कुमार न जाने किस कुल का अलंकार है। 3- जूता पहने हुए 1. वाचिक-नपुं / २-'किल' वाक्य के प्रारम्भ में प्रयुक्त नहीं होता / ३घनापधनः / 4. व्यूढोरस्कः /