________________ ( 130 ) रातों में लगातार' (पुरा) पढ़ता रहा', जिससे उसकी आँखें खराब हो गई। __संकेत-अहं त्वामसकृदवोचं नाहं मनोऽन्यथयितुमीह इति (न मनो विकल्पयितुमिच्छामि) अन्यथयितुम् अन्यथा कर्तुम् / अन्यथा-णिच-तुमुन् / 12 आदित्यः पुरस्तादुदेति पश्चादस्तमेतीति मिथ्या कल्पना। नहि तस्योदुयास्तमयौ स्तः / १५-अनीषत्करोऽनुवादो विशेषज्ञः, किम्पुनश्छात्रसामान्यः ? १६-स किमधीते / बलवदपि शिक्षितोऽसौ पदानि मिथ्या कारयते / 'मिथ्योपपदात् कृवोऽभ्यासे' (1 / 3 / 71) से ण्यन्त कृ से प्रात्मने ही होता है। यहाँ कृ पिच ( कारि ) उच्चारण अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अभ्यास-१६ (अव्यय निपात ) १-*पुत्र के सोलह बरस के हो जाने पर पिता उससे मित्र के समान (वत्) आचरण करे! २-यह समय के अनुकूल नहीं, अतः विचार स्थगित कर देना चाहिये / ३-*सूर्य से उत्पन्न हुआ वंश कहां (क्व) और मेरी तुच्छ बुद्धि कहां (क्व)। ४-*यौवन, धन सम्पत्ति, और प्रभुत्व तथा अविवेकिताइन (चारों) में प्रत्येक अनर्थ के लिये है, जहाँ चारों ही हों, वहाँ क्या कहना (किमु) ? ५-*मैं विदेश में रहनेवाला हूँ, इसलिये (इति) तुम से पूछता हूँ कि पुलीस का एक मात्र अध्यक्ष कौन है ? ६-*क्या गुरु जी उस लड़की से अप्रसन्न नहीं थे (न खलु ) ? ७-मरे हुए का बहाना करके वह रीछ के सामने सांस रोक कर पड़ा रहा। ८-पिताजी कुशल हैं न? (कच्चित्)। क्या माताजी सब तरह सुखी हैं ? 8-अजी (ननु) मैं कहता हूँ तुम्हें अपने काम में ध्यान देना चाहिये। समय बीता जा रहा है / १०-जितना अधिक (यथा यथा) संस्कृत साहित्य का मैने अध्ययन किया, उतना ही अधिक (तथा तथा) मुझे अपनी संस्कृति के महत्त्व पर विश्वास होता गया। 11- मनुष्यों के लिए एक ही बढ़िया वस्तु है।-या (उत) राज्य या (उत) तपोवन / १२-मुझे पूरा (अलम्) पता नहीं और न ही मैं कुछ और जानने में समर्थ (अलम्) हूँ। 13 1-1. तपासू पुराऽधीते स्म (पुराऽध्यगीष्ट) / यहाँ 'पुरा' 'प्रबन्ध' अर्थ में है, ('स्यात्प्रबन्धे चिरातीते निकटागामिके पुरा'-अमर / प्रबन्ध-क्रिया-सातत्य) प्रतः 'पुरि लुङ् चास्मे' का विषय नहीं। इसीलिये लट् के साथ 'स्म' का प्रयोग किया गया है / 2-2. मृतो नाम भूत्वा / यहां नाम (अव्यय) अलीक (मिथ्या) अर्थ में है / 3-3. प्रत्येति कालः /