________________ (106 ) १२-उत्तम को प्रणिपात (प्र+नि+पत् ) से, और शूर को भेद (नीति) से ( उप+जप ) वश में करे / १३-ऐसा कहना शिष्ट-व्यवहार के अनुकूल नहीं (नाऽनुपतति शिष्टव्यवहारम् ) / १४-*आक्रमण करने ( उद्+पत् ) की इच्छावाला सिंह भी क्रोध से सिकुड़ जाता है / १५-रानी कोप से मुझ पर टूट पड़ी, ( अभि+उद्+पत् ), पर मेरा कुछ बिगाड़ न सकी। संकेत-१-उपाध्यायचरणयोः प्रणिपतति शिष्यः / ६–स शत्रुसैन्ये संन्यपतत् (शत्रसैन्यमुपाद्रवत् ), शतधा च तद् व्यदलयत् / ७-आपातरमणीयाः परिणतिविरसा प्रमी विषयाः। ६–नानादेशस्था प्रमुखा नयज्ञा नृपनीतिकृतां वर्तमानामवस्थां मिथः परामष्टुमिह संनिपतिष्यन्ति / राजनैतिक और राजनीतिक आदि आधुनिक प्रयोगों से बचना चाहिये। तद्धित प्रत्ययों से बनाये गये नए 2 विशेषणों का छोटे 2 समासों के स्थान में संज्ञापदों के साथ जो प्रयोग देखने में आ रहा है, उसमें आधुनिक भारतीय बोलियों का प्रभाव झलकता है। एवं-आर्थिकं कृच्छम्, आर्थिकी दशा, व्यावहारिक ज्ञानम्, आदि का प्रयोग त्याज्य है, और इनके स्थान में क्रमशः 'अर्थकृच्छ्रम्, अर्थदशा, तथा व्यवहारज्ञानम्' का प्रयोग होना चाहिये / ऐसा ही संस्कृत का स्वरस है। अभ्यास-४७ (वृत्=होना) १-जब रात पड़ती है (प्रवृत्) पक्षी अपने घोसलों में आ जाते हैं / 2-* राजा प्रजा के भले के लिये काम करे (प्र+वृत्)। और प्रजात्रों को पीडित न करता हुआ पृथ्वी को भोगे (भुज-आ०) / ३-क्या समाचार है (प्रवृत्ति) ? कहो कैसे दिन गुजरते हैं। ४–इस वृक्ष की जड़े उखड़ गई हैं (उद्+वृत्) यह अब गिरा कि तब / ५-यह संसार सदा बदलता रहता है। (परि+वृत्)। ६–लोम बड़ों में श्रद्धा और भक्ति रखते हैं। जिस बात को वे प्रमाण मानते हैं लोग उसी का अनुसरण करते हैं (अनु+वृत्) / ७वह पुत्र ही क्या जो पिता की आज्ञा का पालन नहीं करता है (अति+वृत्) / ८-*श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा-*वही मेरा परम स्थान है जहाँ पहुँच कर (लोग) वापिस नहीं आते (नि+वृत्)। १-कुलाय-पुं० / नीड-पुं०, नपु० / 2-2 जगदिदं परिवर्ति /