________________ ( 118 ) अशोक का अधिकार था। ६-वह योग में कुशल है, और कई एक कौतुक कर सकता है / 7 वह अपनी माता के साथ अच्छा बर्ताव करता है (मातरि साधुः) और भाइयों के साथ अनुकूलता से रहता है (संमनस्)। ८-मैं अपनी माता को देखने के लिये उत्सुक हूँ। मैंने उसे देर से नहीं देखा। 8-*शिकारी चीते को चाम (चर्म) के लिये, हाथी को दाँतों के लिये, चमरी को बालों के लिये, कस्तूरी मृग को कस्तूरी के लिये मारता है / १०-वह अपने बालों में ही लगा रहता है / शृङ्गार ही उसका एक कृत्य रह गया है / ११-कृष्ण ने दासी को कपड़ों के लिये मार डाला / १२-गुणों में राम से बढ़ कर कोई नहीं३ / १३द्रोण खारी से अधिक होता है। संकेत-१-पुरुषेषुत्तमो रामो भुवि कस्य न वन्धः / 'पुरुषोत्तम' यह समास व्याकरण के विरुद्ध है। इसकी व्याख्या गीता में आये हुए श्लोक "उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः" के प्राधार पर 'उत्तमः पुरुषः इति पुरुषोत्तमः' इस प्रकार की गई है / ४-मा हिमाचलादा च कन्यान्तरीपात् समुद्रमेखलायामस्यामिलायामध्यशोकः पुराऽभूत् / इला-पृथिवी / 'अधि' कर्म प्रवचनीय है। अधिरीश्वरे / ६-चर्मणि द्वीपिनं हन्ति व्याधः / यहाँ 'चर्म' समवाय सम्बन्ध से चीते के साथ सम्बद्ध है / जहाँ केवल मात्र संयोग हो वहां भी मुग्धबोध प्रादि के मनसार सप्तमी का प्रयोग हो सकता है। जैसे-कृष्ण ने दासी को........ ११-वस्त्रेष्ववधीद्दासी कृष्णः / १३-अधिको द्रोणः खार्याम् / इसमें ('तदस्मिन्नपिकमिति दशान्ताड्डः') सूत्रकार का अधिक के योग में सप्तमी प्रयोग ही प्रमाख है। अधिक के योग में पञ्चमी भी साध्वी है-'प्रधिको द्रोणः सार्याः'. इसमें भी 'यस्मादधिकं........' इत्यादि में पञ्चमी का प्रयोग प्रमाण है। इस प्रर्थको कहने का एक और भी प्रकार है-अधिका खारी द्रोणेन / अधिकाप्रयाला / कर्मणि क्तः / 'मधिकम्' इस सूत्र से 'मध्यारूढ' पर्थ में अधिक राम निपातन किया गया है। अभ्यास-७ (उपपदविभक्तिः सप्तमी) माप के यहां आते ही हमारे कार्य विघ्नों से रहित हो गये हैं / 2-* 1-1. कारकविभक्ति का प्रयोग करना हो तो, ऐसे भी कह सकते हैंभ्रातभिश्च संजानीते / 2..2. स केशेषु प्रसितः। (स केशकः) / 3-3. उप रामे गुपनं कश्चनास्ति।