________________ ( 104 ) वानर और राक्षस तथा नाना दिशाओं को पवित्र करने वाले ब्रह्मर्षि व राजर्षि उपस्थित हुए ( उप+स्था-पा० ) / २–देवता तारकासुर से पीडित हुए रक्षा के लिये ब्रह्मा की सेवा में (ब्रह्माणम् ) पहुँचे ( उप+स्था-प०)। ३--आर्य लोग सूर्य की पूजा करते थे ( उप+स्था-प्रा० ) और ऋचाओं से उसकी स्तुति करते थे ( उप+स्था-पा० ) / ४—यह मार्ग मुलतान को जाता है ( उप+स्था-पा० ) और यह लाहौर को। ५-अपने गुरु की आज्ञा का ( निदेशम् ) पालन करो ( अनु+स्था) और शास्त्रचिन्ता में मग्न रहो ( रम् ) / ६–मैं यहाँ कुछ दिन ठहरूँगा (अव+स्था-प्रा० ) और फिर पेशावर (पुरुषपुर) चला जाऊगा (प्र+स्था-पा० ) / ७-जो निर्धनों की सहायता करता है वह स्वर्ग में प्रतिष्ठा लाभ करता है (प्रति+ (प्रति+ अव+स्था-पा०)।६-इस बात का निर्णय हुआ (वि+ भव+स्था-प्रा०) कि हम अब से झगडेवाली बातों के विषय में बातचीत नहीं करेंगे। १०-ऋष्यशृङ्ग का बारह बरसों में पूरा होनेवाला२ यज्ञ समाप्त हो रहा है ( सम् स्था—ा० ) और वशिष्ठ आदि वापिस लौट रहे हैं / ११-बहुत से लोग जवानी में ही दरिद्रता के कारण बिना किसी उपचार के 2 मर जाते हैं ( सम्+स्था-पा० ) / १२--जिस प्रकार अग्नि से चिनगारियां निकलती हैं (वि+प्र+स्था-आ० ), इसी प्रकार ब्रह्म से सब भूत जड़ व चेतन उत्पन्न होते हैं / १३-महात्मा गान्धी हर सोमवार को चौबीस घण्टों के लिये मौन व्रत रखा करते थे (आ+स्था-प०)। १४वैयाकरण मानते हैं कि शब्द नित्य है (आ+स्था-आ०), नैयायिकों की प्रतिज्ञा है कि शब्द अनित्य है। १५-वह अकेला ही सब लोगों पर प्रभुत्व रखता है (अधि+स्था)। १६-इस ग्राम से प्रत्येक वर्ष एक सौ रुपये लगान प्राप्त होता है ( उद्+स्था-प०)। १७-मुनि लोग सांख्य वा योग मार्ग १-१-ब्रह्मा की सेवा में पहुँचे = ब्रह्माणमुपतस्थुः / उप+पास अथवा अनु+पास का भी इस अर्थ में प्रयोग होता है / 'ब्रह्मणः सेवायां जग्मुः' इत्यादि आधुनिक प्रकार व्यवहारानुपाती नहीं। 2-2 'द्वादशवार्षिक सत्रम्' / यहाँ भूतकाल में प्रत्यय होने से उत्तर-पद वृद्धि हुई है / यहाँ 'द्वादशवर्षिकम्' कहना ठीक न होगा / 3-3 अनुपचरिताः, अनुपक्रान्ताः /