________________ ( 113 ) १४-*पदार्थ जाने विना प्रवृत्ति की योग्यता ही नहीं होती। 15- अध्यापक मेरे विषय में (मामन्तरेण) क्या विचार करेगा-यह चिन्ता मुझे लगी हई है। १६-तिब्बत भारत के उत्तर में (उत्तरेण) है / १७-मजदूर दिन में छः घण्टे काम करते हैं / १८-स्त्री के बिना लोकयात्रा निष्फल है। घर घर नहीं है, 'गृहिणी' ही घर कहा जाता है। संकेत-इस प्रकरण में केवल विभक्तियों को भी सुविधा के लिये उपपदविभक्तियों के अन्तर्गत कर दिया गया है। १-मां प्रति तु नासौ वीरः, स हि कातरानातिभिद्यते / ८-हिन्दुसंस्कृतेः प्रतिपत्तये संस्कृताध्ययनस्य प्रयोजनवत्तां प्रति न मतद्वैधमस्ति / १३-दिवं च पृथिवीं चान्तराऽन्तरिक्षम् / अभ्यास-२ (उपपदविभक्तिस्तृतीया) १-*चांदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है और बिजली बादल के साथ / २-व्याकरण कठिन है, बारह वर्षों में इसका अध्ययन समाप्त होता है। ३स्वभाव से कुटिल वह किसी की भी प्रार्थना स्वीकार न करेगा। ४-वह एक मांख से काना, और एक टांग से लंगड़ा है। ५-*जंगली बेलों ने गुणों में बगिया की बेलों को मात कर दिया है / ६-तुम्हें पूना (नगर) पहुँचने में कितना समय लगेगा? और किराया' आदि पर कितना खर्च होगा? ७-यह बालक स्वर में प्रिय राम से 3 मिलता जुलता है। (अनु+ह, सम्+वद्) और प्राकार में सीता से / ८-मैं अपने माप से लज्जित है। यह दुष्कर्म५ मुझसे क्यों कर हुआ, यह समझ में नहीं पाता / -यह मीमांसा पढ़ने के लिए काशी में ठहरा हुआ है। अभी उसका अध्ययन समाप्त नहीं हुमा, नहीं तो लौट पाता / १०-मुझे अपने जीवन को सबसे प्यारी वस्तु को सौगन्ध है। 11-* हजारों मूों के बदले में एक पण्डित को खरीदना अच्छा है। १२-*राजानों को सोने की प्रावश्यकता है, पर वे सभी से तो जुर्माना नहीं लेते। १३-मैं वसिष्ठ गोत्र का हूँ, प्रतः वसिष्ठ की निन्दा करनेवाली इस ऋचा की व्याख्या नहीं करूंगा-ऐसा दुर्गाचार्य जी कहते हैं। 1. भाटक-नपुं० / 2. विनियोक्ष्यते, व्यययिष्यते (व्यय् चुरा०) / 3. रामभद्रमनुहरति / रामेण संवदति / संवद् अकर्मक है / ४-४मात्मना जिहोमि। लज्जे, प्रपत्रपे, बीडयामि / 5. दुष्कृत, दुश्चरित-न / 6-6. इति बुद्धि नोपारोहति /