________________ संकेत-२-स स्वामिहत्यायै भृत्यानचोदयत् / ३-नमस्तेभ्यः पुराणमुनिम्यो ये मनुष्यमात्रस्य कृते आचारपद्धति प्राणयन् / ५-यज्ञदत्तः प्रख्यातमल्लाय देवदत्ताय नालम् / (न प्रभवति)। ६-प्रभवति स एकेनैव हायनेन व्याकरणे मध्यमपरीक्षोत्तरणाय / १२-अयमतिसारकी, अस्मै लङ्घनं हितम् / रुचिश्चेत स्यात्तरलं कृशरं मात्रयोपभुजीत / अतिसारोऽस्यास्तीति प्रतिसारको / मत्वर्थीय इनि / कुक आगम। . अभ्यास-४ (उपपदविभक्तिः पञ्चमी) १-*अधर्माचरण छोड़ और सब कार्यों में प्राचार्य के अधीन रहो / २मूर्ख का चपलता के कारण पण्डित से भेद समझा जाता है। ३-गांव के पास एक बाग है, जहां काम-धन्धे से छुट्टी पाकर ग्रामवासी प्रानन्द मनाते हैं। ४-वसन्त को छोड़ अन्य ऋतु को ऋतुराज नहीं कहते। ५-हिमालय पर्वत की श्रेणियां भारत के उत्तर में हैं। ६-सम्पादक महोदय प्रातःकाल से हिसाब' की जाँच पड़ताल कर रहे हैं / ७-पुलिस पिछले सोमवार से भागे हुए डाकुओं की खोज 2 कर रही है / ८-मैं ठीक प्रारम्भ से दुबारा सुनना चाहता है। क्षमा कीजिये, पहले मैंने ध्यान से नहीं सुना। ९-फाल्गुन से श्रावण तक छः महीने उत्तरायण कहलाते हैं और आश्विन से पोष तक दक्षिणायन / १०तुम्हें पौ फटने से पूर्व ही यह स्थान छोड़ देना चाहिये, नहीं तो तुम पर बड़ा भारी कष्ट प्रावेगा। 11 --* सत्पुरुषों के लिए अपने प्रयोजन से मित्रों का प्रयोजन ही बड़ा है / 12-* अभिमन्यु अर्जुन का प्रतिनिधि (प्रति) था और प्रद्युम्न कृष्ण का / १३-शरच्चन्द्र शुचिव्रत से अधिक मेघावी (मेधीयस्) है, पर शुचिव्रत व्यवहार में अधिक कुशल है / १४-*सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं, और झूठ से बढ़कर कोई पाप नहीं। १५-धीर मनस्वी लोग धन के बदले मान को नहीं छोड़ते, चाहे६ कितना ही तंग क्यों न हों६ / १६-हम कार्तिक मास के २५वें दिन से इस पुस्तक को दुहरा रहे हैं / १७-*वे योदा जो प्रतिज्ञा करके (समयात्) युद्ध में पीठ नहीं दिखाते 'सशप्तक' कहलाते हैं। 1. गणेय-नपुं० / 2-2. विद्रुताल्लुण्टाकान् / 3. मृग चुरा० प्रा०, माग, गवेष चुरा०, अनु+सम् +धा, अनु+इष् दिवा०, विचि , अनु+एष भ्वा० प्रा० / 4-4. प्राक् प्रभातादेव / 5-5. अन्यथा महद् व्यसनं त्वामुपस्थास्यति / प्रतिनिधि शब्द के योग में पञ्चमी विभक्ति तो प्राचार्य के अपने प्रयोग से ज्ञापित है-प्रतिनिधिः प्रतिदाने च यस्मात्-पर षष्ठी का प्रयोग भी शिष्टसंमत है / 6--6. कामं कथिता अपि चेत् स्युः /