________________ ( 112 ) तृतीयोऽशः ( उपपद विभक्तियां) अभ्यास-१ ( उपपदविभक्ति द्वितीया ) १-वह मेरे विचार में कोई वीर नहीं वह तो एक कायर' से कुछ अधिक भिन्न नहीं / २-भूखे को कुछ नहीं सूझता / स्मरण किया हुआ सभी कुछ भूल जाता है। ३–मेरा दक्षिणापथ की यात्रा करने का विचार है। केवल साथी के बिना कुछ संकोच है / ४--लाहौर की चारों ओर (अभितः, परितः ) सर्व साधारण के उपयोग के लिये ( सार्वजनिक ) बाग है, जिससे लोगों को बहुत आराम मिलता है। ५-किले की चारों ओर (परितः) एक खाई (परिला) है। शत्र' के चढ़ पाने पर इसे पानी से भर देते हैं। ६-श्रीनगर वितस्ता नदी की दोनों ओर बसा हुआ है। रात को विद्युत् प्रदीपों से प्रकाशित इसके विशाल भवन जल में प्रतिबिम्बित हो कुछ और ही रमणीय दृश्य बनाते हैं। ७--नदी के पास किले के पुराने खण्डहर वैभव की याद दिलाते हैं। ८-हिन्दू-सभ्यता का ज्ञान प्रास करने के लिये संस्कृत अध्ययन उपयोगी है, इसमें कोई मत भेद नहीं। ६-आज प्रातः तुम ने कितनी दूर तक भ्रमण किया ? इरावती तक ( यावत् ) / १०-*सब धनुर्धारी अर्जुन से घटिया हैं और सब वैयाकरण पाणिनि से। ११-तुम्हें धिक्कार है, जो कार्य के परिणाम पर विचार किये बिना कार्य करते हो। मनुष्य को विचारपूर्वक काम करना चाहिये / १२-पाँधी वर्षा और बिजली के पतन के बिना तथा हाथियों के उपद्रव के बिना किसने इन दोनों वृक्षों को गिराया है ? १३–अन्तरिक्ष प्राकाश और पृथ्वी के बीच में है। १-कातर, त्रस्नु, भोरु, भीरुक, भीलुक–वि० / 2-2 न व्यतिरिच्यते / कातरानास्य व्यतिरेकः / 3-3 यात्रां संकल्पयामि / 4-4 कलया संकुचामि / 5-5 शत्रोरवस्कन्दे, परातेरभ्याघाते, अरेराक्रमे, शत्रणा प्राथिते नगरे। ६-प्रति फल , मुर्छ , सम् क्रम् / 7-7 कार्यानूबन्धविचारमन्तरेण / ८-८प्रेक्षापूर्वकारिणा भवितव्यम् /