________________ ( 110 ) प्रभावुका भवन्ति / ११-मांसाशिनो मांसमेवोपचिन्वन्ति न प्रज्ञामित्याहुः / १३-भत्यः शय्यां प्रच्छदेनाचिनोति ( भत्यः शय्यामास्तृणोति ) / अभ्यास-५० (धाधारण करना वा रखना) .. १-दरवाजा बन्द कर दो (अपि+धा) जिससे देर से आने वाले अन्दर न माने पावें / २-मैं अपने पुत्र को कल बिदा करने के लिये प्रबन्ध कर रहा है (सम् +वि+धा)। मुझे इस काम से 2 घण्टे पीछे अवकाश मिलेगा।३जो मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दो (अव+धा), अन्यथा तुम्हें हानि पहुँचेगी। ४-जैसा शास्त्र आदेश करते वैसा ही करो (विX धा), उसके विपरीत नहीं। ५-यह तुम्हारी रचना में नया गुण भर देगा' (आ+धा)। ६-मैं यात्रा के लिये पर्याप्त सामग्री ले जाऊँगा, बाकी के धन को मैं गांव के किसी विश्वासी बनिये के पास अमानत रख जाऊंगा / ७-अपने से प्रबल शत्रु के साथ सन्धि कर लेनी चाहिये (सम् +धा), क्योकि लड़ाई में अपना विनाश निश्चित है / ८-क्या तुम इन लोहे के दो टुकड़ों को पिघला कर जोड़ सकते हो ?(प्रति+ सम् +धा)। -राजा दूसरों को धोखा देने को विज्ञान की भांति अध्ययन करते हैं / क्या वे कभी विश्वास' के योग्य हो सकते हैं ? १०-विद्वान् अब भी भारत के प्राचीन इतिहास की खोज कर रहे, (अनु+सम्+धा) / ११जल्दी करो, जो कहना है कहो (अभि+धा), मैं अधिक देर नहीं ठहर सकता। १२-मैं तुम्हारा अभिप्राय (अभिसन्धि–पुं०)नहीं समझ सकता, तनिक और साफ साफ कहो। १३-थका हुआ मजदूर अपनी बांह का तकिया बना कर (बाहुमुपधाय) सो रहा है / निश्चित पुरुष को जहाँ तहाँ नींद आ जाती है। १४–कपड़े पहिनो (परिधा ) और पाठशाला जामो। देर मत करो। १५-अपने कपड़े बदलो (वि+परि+वा) क्यों कि ये मेले हो गये हैं ।१६मुझे लड़के की पढ़ाई का प्रबन्ध करने के लिये रुपया चाहिये; सो मुझे अपना गृह साहू के पास गिरवी रखना पड़ेगा। 1-1 गुणान्तरमाधास्यति / रचनाया उपस्करिष्यते-ऐसा कृ का प्रयोग करते हुए कह सकते हैं। यहाँ, 'रचनायाः' में षष्ठी तथा 'उपस्करिष्यते' में आत्मनेपद पर ध्यान देना चाहिए / २-विलाप्य / ३–घटयितुमलम् / ४परातिसन्धानम् / ५-प्राप्तवाचः /