________________ ( 108 ) तुम पढ़ाई में मन नहीं लगाते / ५-विद्यार्थियों को अपने पासनों पर झुकना नहीं चाहिये ( नि+सद् ) परन्तु सीधा ( दण्डवत् ) बैठना चाहिये (आस्, उप+विश्)। 6-* जो वस्तु हलकी है वह तैरती है, जो भारी है वह नीचे बैठ जाती है (नि+सद् ) / ७-क्षुद्र हृदयवाले अपने प्रयत्नों में बाधाओं को प्राप्त कर हिम्मत हार देते हैं (अव+सद्)। ८-यदि आप को किसी आवश्यक कार्य में बाधा न हो (अव+सद् ) तो कृपया आप मुझे कल सबेरे मिले / ६–वीर पुरुष विपत्ति में प्रसन्न होता है (प्र+सद् ) और विषाद ( शोक ) नहीं करता (न, वि+सद् ) / १०-युग 2 के अनुसार धर्म बदलता रहता है ( परि+वृत् ), अतः कई शास्त्रोक्त अनुष्ठान भी नष्ट हो गये हैं ( उद् = सद्)। ११-भगवान् कृष्ण कहते हैं-* यदि कर्म न करूं तो ये लोक नष्ट हो जावे / ( उद्+सद् ) / १२-इस प्रकार असत्य में हठ तुम्हे अवश्य विनष्ट कर देगा ( उद्+सद्+रिणच ) / 13-* सत्पुरुषों के मार्ग का अनुसरण यदि पूर्ण रूप से न हो सके तो भी उनका थोड़ा बहुत अनुसरण करना चाहिये, क्योंकि मार्ग से चलता हुअा व्यक्ति कष्ट नहीं उठाता ( न, अव+ खिद् ) / १४–जो धर्मानुसार अपनी जीविका कमाता है, वह अवश्य श्रेय ( श्रेयस् नपुं० ) प्राप्त करता है (आ+सद् ) / १५--कौत्स भगवान् पाणिनि की सेवा में गया ( उप+सद् ) और उनसे वैदिक तथा लौकिक व्याकरण चिर तक पढ़ता रहा / १६-इस ब्राह्मण का अवशिष्ट भाग स्पष्ट है (प्रसन्न ) इसके व्याख्यान की आवश्यकता नहीं। संकेत-१--पितरौ सुतस्य वश्यतया प्रसीदतः, ( वश्ये सुते प्रसीदतः पितरौ ) यहाँ 'वश्यतया' तृतीयान्त है। क्योंकि-'वश्यता' प्रसन्न होने में हेतु है / वैकल्पिक अनुवाद में सप्तमी का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। -- तकितात् समयादागेव स कासारमासीदत् / ४-प्रत्यासीदति परीक्षा, त्वं च पाठेऽनवहितः (पाठे मनो न ददासि)। ५-छात्रा न निषीदेयुरासनेषु, किन्तहि दण्डवदुपविशेयुः / ७–प्रतिहतप्रयत्नाः क्षुद्रमानसा अवसीदन्ति / १२अयमसत्येऽभिनिवेशो नियतमुत्सादयिष्यति वः। १५-उपसेदिवान्कौत्सः पाणिनिम् / चिरं ततो वैदिकं लौकिकं च व्याकरणमधिजग्मिवान् / १६-प्रसन्नो ब्राह्मणशेषः, नैष व्याक्रियामपेक्षते / ( नायं व्याकार्यः ) / 1-1 उत्सन्नाः शास्त्रोक्ता अपि केपि विधयः / २–आजीव-पुं० / जीविका, वृत्ति-स्त्री० / वर्तन-नपुं० /