________________ (105) से मुक्ति के लिये प्रयत्न करते हैं ( उद्+स्था-मा० ) / १८--प्रयाग में गंगा यमुना में जा मिलती है (उप+स्था-पा०)। १६-भोजन के समय आ जाते हो (उप+स्था), काम के समय कहाँ चले जाते हो? 20- राजकुमार पुष्यरथ' पर चढ़ कर (आस्था) सैर के लिये निकल गये / ___संकेत-७-यो दरिद्रान् भरति, स स्वर्गे लोके प्रतितिष्ठति ( महीयते, नाकं सचते ) / ८–इत्युक्ते एवं प्रत्यवतिष्ठामहे / ६-इदं तर्हि व्यवतिष्ठते, न वयं विवादपदमुद्दिश्य संलपिष्याम इति / १६-शतं रूप्यका: प्रत्यब्दमुत्तिष्ठन्त्यस्माद् ग्रामात् / १७-मुक्तावृत्तिष्ठन्ते मुनयः साङ ख्येन वा योगेन वा / यहाँ सप्तमी के प्रयोग के साथ 2 प्रात्मनेपद का प्रयोग भी अवधेय है / १६भोजनकाल उपतिष्ठसे, कार्यकाले क्व यासि ? _अभ्यास-४६ (पत्= गिरना) १-शिष्य गुरु के चरणों में प्रणाम करता है (प्र+नि+पत्) और गुरु उसे आशीर्वाद देता है। २-*घावों पर वार 2 चोट लगती है (नि+पत्) कितना ही बचाव क्यों न करें। ३-विवेक से रहित ( मनुष्यों) का सैकड़ों प्रकार से पतन होता है (वि+नी+पत् ) / ४-आकाश में बलाकायें उड़ रही हैं ( उद्+पत्) अनुमान होता है वृष्टि होगी। ५-तुम कब लौट कर आयोगे (परा+पत् ), मैं कब तक आपकी बाट देखू / ६-वह शत्रु पर टूट पड़ा ( सम् +नि+पत् ) और उसके टुकड़े 2 कर दिये / ७-इन्द्रियों के विषय कुछ काल के लिये हर्षदायक होते हैं,पर अन्त में अरुचिकर हो जाते हैं / ८-जंगल का यह भाग मनुष्यों के यातायात (जन-सम्पात) से शून्य है / ६भिन्न 2 देशों के नीतिज्ञ वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर विचार करने के लिये यहाँ इकट्ठे होंगे (सम् +नि+पत्)। १०--दुष्यन्त के रथ ने भागते हुए हिरन का पीछा किया (अनु+पत्) ।११-इन्द्रियों के विषयों का यदि बार 2 अनुभव किया जाय, तो वे मनको मधुरतर मालूम होते हैं (प्रा+पत् ) / 1-1 पुष्यरथम् ( चक्रयानम् ) आस्थाय / 2-2 गुरुश्च तमाशिषाऽऽशास्ते / 3-3 मधुरतरा आपतन्ति मनसः / यहाँ षष्ठी का प्रयोग सविशेष अवधान के योग्य है। यहां 'इन्द्रियविषयाः' ऐसा कहने की आवश्यकता नहीं / केवल 'विषय' शब्द इस अर्थ में प्रसिद्ध है।