________________ ( 63 ) अभ्यास-३७ ( सन्नन्त ) १--ॐ हजारों मनुष्यों में कोई एक भाग्यवान् ब्रह्म की जिज्ञासा करता है। और जिज्ञासा करनेवालों में भी कोई एक उसे तत्त्वतः जानता है / २हम आपके भाषण को सुनने के लिये उत्सुक हैं। हमारे लिये धर्म का व्या'ख्यान कीजिये / ३-संस्कृत पढ़ने के पीछे मुझे दूसरी भाषाओं के पढ़ने की थोड़ी ही इच्छा रह गई है / सच पूछो तो इस दैवी वाणी के रस को पीकर मुझे अमृत पीने की चाह नहीं रही। ४-उसकी बाँह फड़कती है, उसकी आँखें लाल हो रही हैं। निश्चय ही वह लड़ाई के लिये छटपटा रहा है। ५-वे भाग्यशाली हैं, जो मनुष्यमात्र की सेवा कर यश को प्राप्त करना चाहते हैं / ६–जब कोई भूकम्प देखता है तो ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान् संसार का संहार करना चाहता है / ७—तुम्हारा अधर फड़क रहा है। तुम कुछ पूछना चाहते हो ? निःशङ्क होकर कहो। =-जब ब्रह्मा ने कई प्रकार की प्रजा बनाने की इच्छा की तो उसका आधा शरीर नर रूप और आधा नारी रूप हो गया। ६-क्या तुम दूध पीना चाहते हो? यह तुम्हारी यात्रा की थकावट दूर कर देगा। नहीं, मैं कुछ आराम करना चाहता हूं। १०-मैं यह सिद्ध नहीं करना चाहता कि विधवाविवाह शास्त्रानुकूल है, परन्तु यही कि आजकल यह आवश्यक है। 11- अगर तुम बोलना चाहते हो तो मैं तुम्हें समय दूंगा / १२-*हमारे वर्णन का विषय वह महात्मा ( गान्धी ) है, जो उन स्वार्थी लोगों को जो उससे वृथा द्वेष करते हैं और जो दूसरों के धन से अपना पेट पालते हैं, प्रेम से जीतना चाहता है। १३—मैं यहाँ पाँच दिन और ठहरना चाहता हूँ। फिर यहाँ से अमृतसर को चलने की इच्छा है / १४-मैं बहुत थक गया हूँ। मैं थोड़ी देर सोना चाहता हूँ, अतः नौकर से कहिये बिस्तर लगा दे। १५--जब मैंने एक रीछ 1-1 अल्पाऽधिजिगांसा / 2-2 रज्यतः / 3--3 नूनं बलवद् युयुत्सते / 4-4 ईप्सन्ति, लिप्सन्ते / ५-संजिहीर्षति / 6-6 यदा स्वयंभू िविवधाः प्रजाः सिसृक्षुरभूत् ( ."प्रजा असिसृक्षत् ) / 7-7 अध्वखेद--पुं० / ८-८तिष्ठासामि / 6-6 प्रतिष्ठे। 10--10 सुष्ठु श्रान्तोऽस्मि /