________________ ( 64 ) को मुझे मारने के लिए आता देखा तो मैं भूमि पर मरे हुए का बहाना करके सीधा लेट गया। संकेत–सन्नन्त क्रिया से 'जाना चाहता है', 'सुनना चाहता है', इत्यादि संयुक्त क्रियाओं का बोध होता है। जब चाहनेवाला और जाननेवाला अथवा सुननेवाला एक ही हो। ऐसा समझो कि सन्नन्त क्रिया-पद धातु विशेष के तुमुन्नन्त और इष् धातु के तिङन्त रूप के स्थान में आता है। धर्म को सुनना चाहता है = धर्मं श्रोतुमिच्छति-धर्म शुभ्र षते / सन्नन्त आशंका (भय) के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है / जैसे--चूहा मरने ही वाला है= मुमूर्षति मूषकः / नदी का किनारा गिरने ही वाला है = पिपतिषति (पित्सति ) नद्याः कूलम् / ७–स्फूरति तेऽधरः / त्वं किमपि पिपृच्छिषसि / विस्रब्धं (= निर्भयं) ब्रूहि / १०-नाहं विधवापुनरुद्वाहस्य शास्त्रदृष्टतां प्रसिषाधयिषामि, [] किन्तह्य द्यत्वेऽस्यापेक्षाम् / ( अथवा-यदहं प्रसिषाधयिषामि सा विधवापुनरुद्वाहस्य शास्त्रदृष्टता न भवति, किन्तर्वद्यत्वेऽस्यापेक्षा) / ११--यदि विवक्षसि, अवसरं ते दास्यामि / १५--यदाहं मां जिघांसन्तमृक्षमपश्यम्, तदाहं मृतो नाम' भूत्वा भूमौ दण्डवन्निपतितः / अभ्यास-३८ ( सन्नन्त) १-हे राजन् ! यदि तू गौरूपी इस पृथ्वी को दोहना चाहता है, तो अब प्रजा की बछड़े के समान पुष्टि कर / 2-* जिन धृतराष्ट्र के पुत्रों को मार कर हम जीना नहीं चाहते हैं वे सामने ही खड़े हैं / 3--* तुझ भ्रष्टात्मा ने ईश के दोषों का वर्णन करना चाहते हुए भी उसके प्रति एक बात अच्छी कह दो है। 4-* जो दुर्जन को वश में करने की इच्छा करता है वह कौतुक के साथ निश्चय से हलाहल ( विष ) का पान करना चाहता है, कालानल को इच्छापर्वक चूमना चाहता है, और साँपों के राजा को आलिंगन करने का यत्न करता है / 5-* विधाता ने मानो कि वह सौन्दर्य को एक स्थान पर देखना चाहता हो', प्रयत्न पूर्वक उसका निर्माण किया / 6--* दूसरे दिन १-अशयिषि ( लुङ ) / [] सिध्–णिच्--सन् / 'स्तौतिश्योरेव...' इस नियम-सूत्र से यहाँ अभ्यास से परे के 'स' का षत्व हुा / 2. -२नामेत्यलोके / 'नाम' अव्यय है / अर्थ है झूठ / 3-3 दिक्षत इति /