________________ ( 100 ) पास ओ, और व्याकरण पढ़ो (आ+गम् +रिणच ), व्यर्थ मत घूमो / 4-* संयो के बाद वियोग भी होता ही है / सभी पदार्थ आने जानेवाले हैं। 5-- गंगा और यमुना प्रयागराज में मिलती हैं ( सम् + गम्, प्रा० ) और क्या ही दृश्य बनाती हैं। ६-वह अपने गाँव को जाता हुप्रा ( सम् + गम्-पर० ) रास्ते में बीमार हो गया / ७-'अयोध्या के लोगों ने बनवास जाते हुए राम का पीछा किया ( अनु+गम् ) और उसे वापिस लाने का भरसक यत्न किया। ८--सूर्य निकल रहा है ( उद्+गम् ) और अन्धेरा दूर हो रहा है (अप+ गम् ) / पक्षी इकट्ठे होकर कलरव करते हैं / ६--लंका से लौटते हुए राम का स्वागत करने को भरत आगे बढ़ा (प्रति+उद्+ गम् ) / १०-वह घर से बाहिर गया है (निर+ गम् ), मुझे मालूम नहीं वह कहाँ होगा। ११–वीर वापिस आ गया है ( परा+गम् ), मुझे उसका सामना करने दो। १२---श्रीमतीजी को मैं कौन व्यक्ति जानू (अव+गम् ) / 13-* जिस प्रकार मनुष्य कुदाली से खोद कर जल प्राप्त कर लेता है ( अधि+गम् ) उसी प्रकार परिचर्याशील शिष्य गुरुगत विद्या को प्राप्त करता है / १४--हे माणवक ! जरा ठहरो' (आ+गम् + णिच-आ०)। गुरुजी अभी आते हैं। १५-अपने पिता के पास जाग्रो ( उप+ गम् ) और उनसे अनुज्ञा प्राप्त करो। १६--समुद्र गृह में सखी सहित मालविका को बैठा कर मैं आपका स्वागत करने आया हूं (प्रति+उद्+गम् ) / १७-हमारे घर आज एक पाहुना आया है ( अभि+आ+गम् ) / उसका आतिथ्य सत्कार करना है। १८-क्या तुम्हें यह प्रस्ताव स्वीकृत है ( अभी+उप+ गम् ) ? हाँ जी, हमारा इससे कोई विरोध नहीं। १६-इस जन्म में मनुष्य पूर्व जन्म के कर्मों का फल प्राप्त करता है ( सम् - अधि+ गम् ) / ___ संकेत--३--उपाध्यायमुपसीद, ततश्च व्याकरणमागमय / अनर्थकं च मा परिक्राम।६-संवसथं संगच्छन्तोऽन्तराऽरज्यत / सम् + गम्, जब सकर्मक हो,तो इससे ययाप्राप्त परस्मैपद प्रत्यय आते हैं।८-रविरुद्गच्छति, तमश्चापगच्छति। संगत्य च क्वणन्ति कलं शकुन्तयः / --लङ्कातो निवर्तमानं श्रीरामं भरतः 1-1 आयोध्यकाः / 2-2 वनं प्रव्रजन्तम् / 3--3 आगमयस्व तावन्मागवक / आगमयस्व = कश्चित् कालं सहस्व = प्रतीक्षा करो। यहाँ 'कर्म' के प्रयोग न करने की ही शैली है। ४--प्राधुणिकः / 5--5 स आतिथ्येन सत्करणीयः /