________________ (60 ) यहां 'कलिङ्ग' देशविशेष का नाम होने से बहुवचन में प्रयोग होता है। इसी प्रकार -'जब मैं पागल थी तो कहते हैं मैंने उसके सामने बहुत कुछ बकवास किया' इस वाक्य में कहने वाला पागलपन के प्रभाव से अपनी कही हुई बात को नहीं जानता। इसका अनुवाद यह है-बहु जगद पुरस्तात्तस्य मत्ता किला हम् / १०-अन्यत्र विवदमाना अपि न प्रेत्यभावे व्यूदिरे प्राश्चः / (व्यूदिरे= वि ऊदिरे = वद् लिट् सम्प्रसारण ) / अभ्यास-३५ (णिजन्त) रसोइए को मेरे लिये चावल पकाने को कहो आज पेट में कुछ गड़बड़ हैं / २---अपने नौकर को ग्राम भेज दो, और उसके हाथ अपने बड़े भाई को सन्देश भेज दो। ३–वह रात दिन तप द्वारा अपने शरीर को क्षीण कर रही है। न जाने वह किस लक्ष्य से प्रेरित हुई है। ४-उसे मेरे लिये एक हार गुथने को कहो। ५–बच्चे को आराम से सुला दो, आज दिन भर यह सोया नहीं। ६-ॐवृक्ष अपने ऊपर तेज धूप सहारता है ओर छाया के लिये उसका आश्रय लेने वाले लोगों के ताप को दूर करता हैं (शम्-णिच्) / ७-श्रेष्ठ मुनिजन कन्द और फलों द्वारा जीवन का निर्वाह करते हैं। ८-इन चावलों को धूप में सुखा लो। ऐसा न हो कि इन्हें कीड़ा लग जाए। 6= मां बच्चे को दध' पिलाती है'. और चांद दिखाती है। १०--यदि मैं मोहन से यह काम न करवा लूं, तो बात ही क्या' ? ११--दिव्यचक्षु प्राप्त हुआ संजय धृतराष्ट्र को राजभवन में ही युद्ध का सारा हाल सुना दिया करता था। १२-यदि तुम्हारी प्रतिज्ञा सच्ची है, तो हे राजन् राम को आज ही वन में भेज दो। १३--जब वह यहाँ आये, तो मुझे यह बात अवश्य याद दिलाना", देखना कहीं भुला न देना। १४--चपरासी मेरी डाक मेरे मकान पर प्रतिदिन सायंकाल पहुँचाता रहेगा / १५--पक्ष में तीन बार केश, मुंछ लोम और नखों को कटवाये, अपने आपकी अधिक सजावट न करे। १-हृ+णिच / 2 ग्ले+णिच् / ३-३-माऽत्र कोटानुवेधो भूत् / 4-4 शिशु धायते / धे ( ट ) भ्वा०, स्तन्यं पाययते / ५-५-तदा किं नु मया कृतं स्यात् / ६-अवितथा / ७-७-स्मारय / ८-८-अनन्तरायं हारयिष्यति / ६-६-नात्मानमतिमात्र प्रसाधयेत् /