________________ ( 85 ) संकेत-इस अभ्यास में कुछ एक 'आसन्नपूर्णभूत' काल की क्रिया के सूचक वाक्य दिये गये हैं। इनमें लुङ लकार के अतिरिक्त अन्य कोई लकार प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। जैसे-ज्योतिषां पतिरहस्कर उदगात् दिशश्वाराजिषुः (दिशश्चाभ्राजिषत ) / ४–अद्यवाहं रोचकस्यास्य पुस्तकस्य पाठं समापम् ( समापिपम् ) / ६--ते तं मिथ्येव * चौर्येणाभ्ययुक्षत / अभियुज़-लुङ / ७-कान्दिशीकान्प्राग्रहीद्रिपुरिति वार्ता / प्र-ग्रह का अर्थ बाँधना है। ११--अहमस्नासिषम्, इदानीं भोक्ष्ये / १३--स ऋक्षं वीक्ष्य श्वास निरुध्य भूतलेऽशयिष्ट ( न्यपादि निपूर्वक पद् का अर्थ लेटना है। यहाँ लुङ में कर्तरि चिरण हुआ है)। १४--अग्नीनाधित-यहाँ लङ का प्रयोग नहीं हो सकता। १५--कृष्णो बाल्य एवेदशानि कौतुकान्यकार्षीत् यानि महान्तोऽपि कतु नाशकन् / अभ्यास-३१ (लुङ् लकार) १--कोलाहल मत करो, इससे श्रेणी की शान्ति में बाधा पड़ती है २-दूसरों की सम्पत्ति को देखकर मत ललचायो', यही पाप का मूल है / ३-ऐसा मत करो, यह तुम्हारे लिये अच्छा नहीं। ४-ऐसी बात का मन में ख्याल मत करो, इससे मन दूषित होता है / सदा मङ्गल सोचो। ५शोक' मत करो, इससे तुम्हारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। ६पढ़ाने के लिये इन लड़कों को किसी सुयोग्य अध्यापक को सौंप दो, ताकि वे कहीं उलटे मार्ग पर न जाएँ। ७-धर्म अर्थ और काम में लगे हुए इस जीवन के सर्वोत्तम प्रयोजन को मत भूलो। ८-भोजन के समय को कभी मत टालो', भोजन वेला के टालने में चिकित्सक दोष बतलाते हैं / ६-हे बालक, डरो मत, यह तुम्हारी माता आ गई है। १०-इस प्रकार बात मत करो, इससे ढिठाई प्रकट होती है। 11-* हे पार्थ ! (अर्जन ) कायर मत बनो, यह तुम्हें शोभा नहीं देता। 12-* भाई भाई से देष न करे, और बहिन वहिन से / १३-बच्चे का ध्यान रक्खो, कहीं कुएं में न गिर जाय / 14- इस ऊँचे नीचे भूमि के टुकड़े को समतल कर दो। * यहाँ 'तं चौर इति मिथ्र्यवाभ्ययुक्षत' ऐसी रचना भ्रममूलक है। १-१-माऽभिध्यासी: परसम्पदम् / अभिपूर्वक ध्ये के इस अर्थ पर ध्यान देना चाहिये / २-२-मा स्म शोची:, मा स्म शोचः / शुच 'शोक करना'का लुङ में अशोचीत् रूप होता है, अशुचत् नहीं। ३-अति क्रम् / ४भी-मा भेषीः। ५-धाष्टर्य, वैयात्य--न / ६-६-शिशुमवेक्षस्व, मा कूपेऽवधात् (मा स्म कूपे पप्तत् ) / प्रवधात्