________________ ज्जीवमन्नमदात्, नग्नेभ्यश्च वासो व्यतारीत् ।यहाँ 'लुङ,' के स्थान में लङ्का प्रयोग अशुद्ध होगा। 15 –किंवदन्त्येषा, यद् रक्षापुरुषाः कंचिद् दोषमारोप्यानागसं गोपालचन्द्रमग्रहीषुः / १६-स संगराद् व्यचालीत् (= व्यह्वाली ) ( स प्रतिसमहार्षीत् सन्धाम् ), पूर्व तु नैवमचारीत् / १७–अस्मदीये ग्रामे रात्रिदिवं देवोऽवर्षीत्, सर्वतश्चोदकेन सम्प्लुतम् / १६-रामः श्यामेन संव्यवहारमत्यन्ताय पर्यहार्षीत् = पर्यत्याक्षीत् (श्यामाद् आत्यन्तिकं वैमुख्यमास्थात्)। अभ्यास-३० (लङ् लकार) 1-* हमने सोमरस पिया है, और हम अमर हो गये हैं। २–ज्योतियों का स्वामी सूर्य निकल आया है, दिशाएँ चमक उठी हैं और सर्वत्र चहल-पहल है।३-मैंने भरसक प्रयत्न किया, शेष' ईश्वर के भरोसे है। ४-मैंने इस मनोरंजक पुस्तक का पढ़ना अभी समाप्त किया है / तुम चाहो तो ले सकते हो। ५-देखो, शत्र की सेना ने पहुंचने से पहिले ही नगर को बारूद से उड़ा दिया है / ६-उस पर चोरी का अभियोग लगाया गया है, पर यह अभियोग निराधार है। ७-समाचार मिला है कि भगाने वाले शत्र के द्वारा बन्दी बनाए गए हैं / ८–यद्यपि उसे चेतावनी दी गयी है, फिर भी उसने अपने आचरण को नहीं सुधारा / ६-सब ऋषि इकट्ठे हो गये हैं, केवल महातपस्वी वाल्मीकि की प्रतीक्षा की जा रही है। १०–कण्व ऋषि माश्रम में नहीं, वह शकुन्तला के दुर्भाग्य को टालने के लिये गये हैं / ११मैं स्नान कर चुका हूँ, अब मैं भोजन करूँगा। १२-शत्रु ने अपने आपको इस घने जंगल में छिपा लिया है। १३-रीछ को देखकर वह श्वास बन्द कर पृथ्वी पर लेट गया। 14-* यह जो पौर्णमासी व्यतीत हई है उसमें उसने अग्न्याधान किया / १५-कृष्ण ने बचपन में ऐसे 2 कौतुक किए, जो बड़े 2 लोग नहीं कर पाए। १६-परीक्षा निकट आ गयी हैं, पर तुम अब भी प्रमत्त हो। 1-5 शेषमीश्वरेऽधि / यहाँ शेषं पुंवत्' इत्यादि की तरह घबन्त 'शेष' शब्द भी नपुंसक में प्रयुक्त किया है / २-आग्नेयचूर्णेन / 3-3 उदसीषदत् / उद्+सद् णिच्-लुङ् / 4 प्रबोधितः।५-सम् +आधा ।६-दुर्दैवं शमयितुम् / ७-प्रगात्, अयासीत्, अगमत्, प्रायिष्ट अय्-लुङ / 8 तिरस् कृ, गुप् , पा+ छद् गुह / 6-6 परीक्षा संन्यधात् / .