________________ ( 80 ) देवद / निन्दा करने की आदत' को छोड़ दे, (जिसे छोड़ने को वह तैयार नहीं ) तो वह समाज में सबसे' ऊँचा पद प्राप्त करे। ६-यदि पहरे दार' सावधान होते,तो चोरी न होती।७-यदि तुमने संस्कृत साहित्य के मधुर रस का पान किया होता तो क्या तुम्हारी अंग्रेजी या उर्दू के प्रति कुछ भी रुचि होती ?।८-यदि भगवान कृष्ण की सहायता न होतो', तो पाण्डव कौरवों को न जीत सकते / ह-यदि आग बुझाने वाला इंजन सामयिक सहायता न देता, तो सारे महल्ले को आग लग जाती और लाखों की सम्पत्ति जल कर राख हो जाती ।१०-अगर पत्थर का बाँध न बनाया गया होता, तो नदी शहर को बहा ले जाती। ११-यदि पुलिस हस्तक्षेप-न करती तो झगड़ा भली प्रकार निपट जाता / १२-यदि तुम मेरे घर आते तो मैं तुम्हें मधुर और स्निग्ध भोजन खिलाता / १३-हे भ्रमर ! * यदि तूने उसके उसाँस की गन्ध ली होती, तो क्या तुम्हारी इस कमल में रति होती ? १४-यदि वह दुष्टों के वश में न पड़ता, तो सदाचार से न गिरता। ____संकेत-लुङ उन हेतु-हेतुमद्भावविशिष्ट वाक्यों में प्रयुक्त होता है, जहाँ क्रियातिपत्ति = क्रिया की अनिष्पत्ति, (अर्थात् प्रसिद्धि ) अर्थापन =(अर्थ से प्रतीत ) हो, अथवा हेतु वाक्यार्थ का झूठापन्न ( न होना ) झलकता हो / जैसे नीचे लिखे उदाहरणों से स्पष्ट हो जायगा / लुङ् लकार भूत तथा भविष्यत् के अर्थ में व्यवहृत होता है / 1 - दक्षिणेन चेदयास्यन्न शकटं पर्याभविष्यत् / यहाँ दोनों वाक्यों में क्रियातिपत्ति अर्थ से ( शब्द से नहीं) स्पष्ट है। यहाँ स्पष्ट अर्थ है कि छकड़ा दक्षिण को नहीं गया, इसलिये उलट गया। ३-वृष्टिश्चेदभविष्यत् दुर्भिक्ष नाभविष्यत् / 4 १-१-परिवादनशीलता। २-२-लोके / 3-3 - सर्वमहापदम् सर्वेभ्यो महत्तरम् =सर्वमहत् / 'गुणात्तरेण तरलोपश्च' / ४-यामिकाः / ५-५-न चेत्कृष्णः साहाय्यं व्यतरिष्यत् ".." / ६-६-सामयिकी सहायता काल्यं साहायकम् / ७-७-भस्मसाद् अभविष्यत् / ८-सेतु पुं० / ६-दुराचार-वि० / संस्कृत में 'दुराचार' शब्द बहुव्रीहि समास के रूप में अधिक प्रयुक्त हुआ है / 'अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्'-गीता / 'दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः'-मनु० / 'अत्याचार' भी प्रायः बहुव्रीहि है / अतः 'दुराचारिन्' और 'अत्याचारिन्' का परिहार करना चाहिये /