________________ ( 76 ) ४-युद्ध में गये सैनिक वापिस पाएँ या न आए कुछ पता नहीं / ५-ईश्वर की इच्छा से विष भी कहीं अमृत हो जाता है मौर अमृत भी विष / ६-चाहे आकाश ही क्यों न गिर पड़े, सूर्य भी शीतल क्यों न हो जाय / हिमालय हिमको क्यों न त्याग दे और समुद्र अपनी मर्यादा को क्यों न छोड़ दे, पर मेरा बचन तो अन्यथा नहीं हो सकता। 7-* संसार सूर्य के बिना भले ही रह सके, अथवा खेती भी जल के बिना भले ही रह सके, परन्तु मेरा जीवन राम के बिना शरीर में नहीं ठहर सकता / 8-* मैं राजा के वचन से भाग में भी कूद सकता हूँ, अत्युग्र विष का सेवन कर सकता हूँ। और समुद्र में भी डूब सकता हूँ। ६-साँप मुझे काट नहीं सकते, शत्रु मुझे हरा नहीं सकते, और मृत्यु भी मेरे पास फटक नहीं सकती। १०-बुद्धिमान् को विपत्ति में घबराना नहीं चाहिये / ११-प्रजा को गुणवान् राजा के प्रति द्रोह नहीं करना चाहिये / १२-दुर्बल मनुष्यों को बलवानों के साथ नहीं लड़ना चाहिये / ___ संकेत-५-रणं गताः ( समरमुपेताः ) योद्धारः प्रतिनिवर्तेरन् वा न वेति को वेद / ६-अपि गगनं पतेत्, तिग्मांशुर्वा शीततामियात्, हिमवान्वा हिमं जह्यात्, सागरो वा वेलामतीयात्, मद्वचनं तु न विपरीयात् ( नान्यथा स्यात् ) विपरीयात् = विपरि इयात् / विपर्यय अन्यथाभाव को कहते हैं / ६-सा मां न दशेयुः, शत्रुर्मा न पराजयेत, मृत्युश्च मां नोपेयात् / ११-गुणिनमीश्वरं नाभिद्रुहयेयुः प्रकृतयः। अभ्यास-२७ (लुङ्लकार) १-यदि छकड़ा दाई ओर गया होता तो न उलटता। २-यदि तुम पहले आते तो पूज्य गुरु जी को मिल लेते। ३-यदि समय पर वर्षा हो जाती तो अकाल न पड़ता। ४-यदि दछिण अफरीका के गोरे शासक भारतीयों के जन्मसिद्ध अधिकारों को दे दें (जिसको कोई सम्भावना नहीं) तो दोनों जातियों का आपस का सम्बन्ध बहुत अच्छा हो जाय / ५-यदि 1 वि मुह / २-वि ग्रह / दुर्बला बलवत्तरे विगृहोयुः / ( बलवत्तरान्न विग्रहीयुः)। दोनों तरह का प्रयोग शिष्ट सम्मत है /