________________ ( 15 ) अभ्यास---११ ( क्रिया विशेषण) १--यह स्पष्ट रूप से ( व्यक्तम् ) प्रमाद है, आपसे यह कैसे हो गया। २.-उसने सुरापान की आदत' अभी पूरी तरह से ( निरवशेषम् )नहीं छोड़ी, यदि कुछ देर और पीता रहा, तो निःसन्देह ( असन्देहम् निर्विचिकित्सम्, मुक्तसंशयम् ) इसके फेफड़े खराब हो जायेंगे। ३--वह दर्द भरे स्वर से ( करुगम्, पार्तम् ) चिल्लाया, जिससे आसपास बैठे हुए सभी लोगों के हृदय में दया भर आई। ४-उसने यह पाप इच्छा से ( कामेन, कामात्, कामतः ) किया था, योंही नहीं, अतः गुरु जी ने उसे त्याग दिया ।५-स्वादि, दिवादि, तुदादि और चुरादि---ये क्रम से पहला, चौथा छठा तथा दसवां गरण हैं / 6-- अभिज्ञानशाकुन्तल विशेष कर ( विशेषेण, विशिष्य ) कोमल बुद्धिवाले बालको के लिये कठिन है / वे इसका रसास्वादन नहीं कर सकते / 7--* हे मित्र ! यह बात हँसी से कही गई है, इसे सच करके न जानिये। ८-उसने खुल्लमखुल्ला (प्रकाशम् ) अधिकारियों के दोषों को कहा और परिणामस्वरूप अनेक कष्टों को सहा / ६-आप यहाँ से सीधे दाहिने हाथ जायें, आप थोड़ी देर में विश्वविद्यालय पहुँच जायेंगे / १०-वह दयानतदारी से ( ऋजु ) जीविका कमाता है और थोड़े से (स्तोकेन) ही सन्तुष्ट होकर सुख से रहता है। 11--* तपोवन में स्थानविशेष के कारण विश्वास में आये हुए हिरन निर्भय होकर ( विस्रब्धम् ) घूमते फिरते हैं / १२--साँप टेढ़ा ( कुटिलम्, जिह्मम् ) चलता है, पर शेर महानद को भी छाती के बल से सीधा तैर कर पार करता है / १३-शिव यथार्थ में ( अन्वर्थम् ) ईश्वर है, वस्तुत: ईश, ईश्वर, ईशान, महेश्वर मुख्यतया इसी के नाम हैं और गौरणतया दूसरे देवताओं के / 14---* दूर तक देखो, निकट में ही दृष्टि मत रखो, परलोक को ( भी ) देखो, (केवल) इस लोक को ही नहीं / १५--उसने मुझे जबरदस्ती ( हठात्, बलात्, प्रसभं, प्रसभेन ) खींचा और पीछे धकेल दिया। संकेत-३–स करुणमाक्रन्दत्, येनोपोपविष्टानां हृदयान्याविशत्कारुण्यम् / उपोपविष्टः समीप उपविष्टः / ४–स कामेन [ कामतः ] इममपराधमचरन्नाकामतः ( न तु यदृच्छया ), तेन तं निराकुर्वन् गुरुचरणाः / यहाँ 'कामेन' यह 1-1 कथमयं चरितस्त्वया / २-प्रसङ्ग-पुं० / प्रसक्ति-बी० / ३-पुप्फुस-नपु० / 4-4 पृष्ठतः प्राणुदत् /