________________ ( 26 ) लिये अत्यन्त हितकारक है। यह हल्का और बुद्धि-वर्धक होता है / १५गौड लोग दही ( दधि ) के साथ भात खाते हैं। पंजाब में तो दूध चावल अथवा दही चावल बीमार ही खाते हैं। १६–रुद्र की तीसरी आँख (मक्षि नपुं० ) से निकली हुई अग्नि (कृशानु पु० ) से क्षण भर में कामदेव राख का ढेर ( राशि पु० ) हो गया। १७–मुझे अपनी मौसी (मातृष्वस) को देखे हुए देर हो गई है, फूफी (पितृष्वस ) को तो पिछले ही सप्ताह मिला था / १८-अब हमें बिछुड़ना होगा यह जानकर सीता की आखें (अक्षि) डबडबा गई। १६-मेरी भाभी (प्रजावती, भ्रातृजाया ) की अपनी ननद ( ननान्ह ) से नहीं बनती, अपनी देवरानी ( यातृ) से तो खूब घुटती है। २०–रक्त' पीने वाली इस भयंकर राक्षसी ने कई यज्ञों का विध्वंस किया और लोगों को अनेक प्रकार से कष्ट दिया। २१-पिता पुत्र के कर्मों का उत्तरदायी है ऐसा कोई मानते हैं, नहीं है—ऐसा कोई दूसरे कहते हैं। संकेत–६–वल्लकी वाद्यानामुत्तमा मता। अस्या माधुरी सुरासुराणां समं संवननम् / 15- गौडा दध्नोपसिक्तमोदनं भुञ्जते, पञ्चनदीयास्तु रुजार्ता एव पयसोपसिक्तं दध्ना वोपसिक्तं भक्तम् / १७-अद्य चिरं मातृष्वसारं ( मातुः स्वसारम्, मातुः प्वसारम् ) दृष्टवतो मम / १८-उपस्थितो नौ वियोग इति सीताया अक्षिणी उदश्र णी अभूताम् / १६-मम भ्रातृजाया ननान्द्रा न मंजानीते, यातरि तु भशं प्रीयते / २१-पिता पुत्रस्य कर्मणां प्रतिभूरिति केचित्, नेत्यपरे / ऐसे वाक्यों में क्रियापदों को छोड़ने में ही शोभा है / अभ्यास-२४ ( तवर्गान्त, चवर्गान्त, हलन्त शब्द ) १-हमारे इतिहास में ऐसी वोर स्त्रियाँ ( योषित् ) हो चुकी हैं, जिन्हें आज भी दुनिया याद करती है। २–हिमालय ( हिमवत् ) जो पृथ्वी पर सबसे ऊ चा पहाड़ ( सानुमत्, भूभृत् ) है, जिसकी चोटियों पर नित्य ही धूप रहती है-इस देश (नीवृत् पु० ) के उत्तर में विराजमान है / ३-नदियों ( सरित् स्त्री० ) का जल बरसात में मलिन हो जाता है, पर मानस का नहीं और शरद् ऋतु में निर्मल हो जाता है। ४-हिरनों के बच्चे इन शिलाओं ( दृषद् स्त्री० ) पर इस लिये बैठते हैं कि यहाँ सीता अपने हाथों से इन्हें १-रक्तपाः (प्रथमा एक 0 ) विच् प्रत्यय / 2-2 हरिणक-पु.। ३-निषीदन्ति /