________________ ( 48 ) रही है, तो मुझे संसार को शान्ति की कुख भी भाशा नहीं दीखती' / १५-ऐसा नहीं होता कि भिखारी हैं इसलिए हाँडी नहीं चढ़ाते, हिरन है, इसलिये जो नहीं बोये जाते / . संकेव-६ - इदं हि बुद्धि नोपारोहति मानवो भ्रातृषु बन्धुषु चेनः समाचरितु कवं क्रमते / 6 रात्रौ रोचमान इन्दुः कस्य न प्रियोऽयत्र कामुकात् कुम्भीलकाच / २२-क्रमते तस्य बुद्धिा , नव्य-न्याये तु प्रतिहन्यते (स्थलति)। १३-य उत्पन्नभक्षिणस्तेऽन्तेऽवसीदन्ति / अभ्यास-५ ( लट् ) १-जिसे तू मोमबत्ती समझताहै वह चर्बी को बत्ती होती है / २-नगर से बाहिर मैदान में लोग इकट्ठे हो रहे है, कारण कि माज महात्मा गान्धी का जन्म दिन है। अभी थोड़ी देर में पं. जवाहर लाल नेहरू महात्मा जी के चरित पर व्याख्यान देंगे। ३-जो दुष्टों के साथ मेल' करता है, वह गिर जाता है / उसकी बुद्धि उलट' जाती है और लोक में उसकी निन्दा होती है। ४-वह प्रायः सूर्य निकलने पीछे उठता है, इसलिये सुस्त और बीमार रहता है / और यह बात भी है कि वह मधेरी तंग गली में रहता है ।५-वह किसी का भी विश्वास नहीं करता, सदा शक्ति रहता है / चित्त की शान्ति इसके भाग्य में नहीं / ५-हठी' मादमी निन्दा की पर्वाह नहीं करता, जिस बात को पसन्द कर लेता है, जहाँ अपना चित्त जमा देता है। उससे कभी नहीं टलता / ७-जो लक्ष्मो के पीछे भागता है लक्ष्मी उससे परे भागती है मोर जो विरक्त महानुभाव इसकी उपेक्षा करता है यह उसके चरण चुम्बन करती है, पर तिरस्कार को प्राप्त होती है / ८-अराजक जनपद में जल 1-1 तादा नाशसे लौकिकाय शमाय / यहाँ चतुर्थी के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिये / २-सम् पद इ, सम् मज भ्वा०प० / सम् दृत् भ्वा० मा० / एकी भू / एकत्रीभू प्रत्यन्त भ्रष्ट है। यहाँ नि हो नहीं सकता। ३-सम् सूज दिव० मा०, सम् प्रतु दिवा० प्रा०, सम् गम् भ्वा० प्रा०, सम् पृच (कर्म-कर्ता अर्थ में)। ४-विपरि वृत् म्बा० मा०, विपरि मस् दिवा०प०, बि-परि इ प्रदा०प०। ५-कामवृत्ति-वि०। ६-वचनीय-नपु। ७-ईक्ष. गण / ८-अभि नन्द मा०प०।-६ योगागिनिविशले /