________________ न्याससमिती समार्पयत् सुतांश्चोदवृत्तान्दायाचे निरभजत् / १०-'स्नेहक्षये' निरवाद्दीपः / ११--यदैकागारिको गृहपति जागरितमपश्यत्तदा भीतवत् सहसापाक्रामत् ( तदा भीतवत् तेनापवाहित पात्मा)। १२-धारासाररवर्षद् देव इति नाहमाशीयो गेहात् प्रयातुमुदसहे / १३–एष स्थविरो बहुशः समृद्धि व्यद्धि चाश्नुत (प्रयं जरठो वाराननेकान् पतनसमुन्छायो समवेत्)। भर्होऽयमस्मान्बहूपदेष्टुम् / १४-ह्योऽहं दैवानुग्रहेण कथं कथमपि जीवितसंशयादमुच्थे पादोदरो मत्पादान्तिकादत्यसर्पत् / १५-लुण्टाका उद्बध्य मार्यन्तामित्यादिशनधिकृवाः। अभ्यास-१५ (लङ लकार) १-कुमारी मोहिनी का गोत समाप्त ही हुआ था कि उपस्थित लोगों ने कहा-'एक बार और', 'एक बार और' / २-आधी रात को सम्बिन्धियों से बातें करते करते रोगी ने दम तोड़ दिया / ३-वह परीक्षा के दिनों में दस' बारह घण्टे काम किया करता था तो भी नहीं थकता था। ४-जब मैं पाठशाला गया, तो छुट्टी का घण्टा बज रहा था। लड़के कमरों से भागे 2 बाहिर पा रहे थे। कोई चीखता था, कोई सीटी बजाता था, और कोई खुशी के मारे फूला नहीं समाता था / ५--हिरन छलाँगे मारता हुमा मैदान के पार निकल गया / ६-वह लड़खड़ाता हुमा चट्टान से नीचे मौधे मह गिर पड़ा और उसका अंग 2 टूट गया। ७-यह वह कहानी है जो दस वर्ष पहले मैंने सुनी थी। ८-पक्षी माकाश में इतना ऊँचा उड़ गया कि देखते ही देखते भांखों से पोझल हो गया। ६–राजपूत ऐसी वीरता से लड़े कि उन्होंने शुत्र१२ के छक्के छुड़ा दिये। १०-सन्तरों को देखते ही उसके मुंह में पानी भर माया। ११-वर्तमान विश्वव्यापी युद्ध मारम्भ ही हुमा था कि दुकानदारों ने प्रत्येक वस्तु की कीमत १-१यदा तैलनिषेकोऽवास्यत्तदा "प्रव-सो अकर्मक भी होता है। 2-2 निशोथ, प्रर्धरात्र-पु.। ३-३प्राणानमुश्चत् / ४-४दशद्वादशा होराः (द्वितीया)। मनध्यायघण्टा / 6-- चीत्कारशब्दमकरोत् / ७-७योशशब्दमकुरुत / ८-८प्रमदेन परवानासीत् / 6-6 प्लवमानः / 10-10 निकर्षणमत्यक्रामत् / ११--११यामितो वर्षदशकेऽशृणवम् / 12-12 परीन्हतोत्साहान् व्यदधुः /