________________ ( 71 ) अभ्यास-२० ( लोट् लकार) 1-* यदि तुम्हारा यही निश्चय है, तो शस्त्र उठा लो। 2-* मैं आपका शिष्य हूँ, आपके पास आये हुए मुझे उपदेश दें। 3-* हे शकुन्तले ! आचार का अनुसरण करो। तुम्हारे मुँह से कोई ऐसी वैसी बात न निकले। 4 कृपा करके आप मेरे फन्दे काट डालें / मैं आपका चिर तक आभारी रहूंगा। ६-हे शकुन्तले ! भय छोड़ो और होश संभालो, ये तुम्हारी सखियाँ प्रियंवदा और अनसूया तुम्हें पंखा कर रही हैं / ७-आगो किसी को हानि न पहुँचाने का वचन करें।८-* नम्रता, पछताछ और सेवाभाव से उस (ब्रह्म ) को जानो।६-परमात्मा करे तुम अपने योग्य पति को प्राप्त करो और वीरजननी हो / १०-अभिमान को मार दो, इसे बड़ा शत्रु समझो / क्रोध और लोभ छोड़ दो। ११-अपनी वाणी पर काबू पायो, वाणी पर अधिकार और फजूल बकवास करने में भेद करना सीखो। १२-आमो कुछ समय के लिये हम उसकी प्रतीक्षा करें / १३-बेटा ! धीरज धरो, भय गया, अब डरने का कोई कारण नहीं। १४-यज्ञ के लिये तैयारी की जाय / नाना देशों के राजानों को निमन्त्रण पत्र भेज दिये जायें। 15-* वे अपनी इच्छानुसार वन से तपस्या का धन, तीर्थों का जल, समिधायें, फूल, तथा कुशा घास ले आयें। १६-अपनी प्राय को बढ़ाओ। और खर्च को कम करो। इस प्रकार सुखी रहोगे, इससे भिन्न सुख का मार्ग नहीं ।१७-जल्दी 2 मत खामो, चबा 2 कर खामो; नहीं तो खाना हजम नहीं होगा। १८--'अपनी पुस्तक का दसवां पृष्ठ खोलो और दूसरे पैरे से पढ़ना शुरू करो। १६-नाव में सबसे पहले चढ़ो, और सबसे पीछे उतरो। २०-पहले उस्तरा तेज करो, और फिर दाढ़ी बनामो। __संकेत-४-अप्यन्तरायाण्यार्य ? अन्तर् पा-या-लोट् / णत्वविधि के लिये अन्तर् शब्द को उपसर्ग समझा जाता है। 'आनि लोट' इस सूत्र से 'मानि' के न को ए होता है। अपिशब्द प्रश्न अर्थ में है। ५-छिन्धि नः पाशान् / यहाँ 'लोट् लकार' का प्रार्थना के अर्थ में प्रयोग हुआ है / 'कृपया' 'सकृपम्' आदि शब्दों का लोटलकार के होते हुए प्रयोग नहीं करना चाहिये / १-पाश-पुं० / २-प्रतिज्ञा / 3 प्रति+ईक्ष , प्रति+पाल, उद्+ ईक्ष / 4-4 स्वं पुस्तकं दशमे पत्रपार्वे समुद्घाटय /