________________ उतराया है कृपया इसे घर तक पहुँचाने में सहायता करें। १४तुम चाहो तो जा सकते हो, मोर चाहो तो ठहर सकते हो। १५-प्रामो, इस घनी छाया वाले वृक्ष के नीचे बैठे, यहाँ तो धूप मा गई है / १६-बागार से दो रुपये का प्राटा' और पाठ माने की सब्जी लामो। १७-चार 2 की पंक्ति बनाकर खड़े हो जामो। १८-नौकर को कह दो कि मेरा बिछौना बिछा दे, मुझे नींद आ रही है। १६-दहकते हुए कोयले को चिमटे से उठायो और इकटठे' करके पानी से बुझा दो। २०-पानों को बुलाकर ब्राह्मणों को अन्न परोस दो। संकेत-२-व्यवस्यतु भवानिदं कृत्यम् / ४-प्रसाधयतु भवान् स्वां योग्यताम् / यहाँ लोट् लकार 'प्राप्तकाल' के अर्थ में प्रयुक्त हुमा है। १४-अपि याहि, अपि तिष्ठ / यहाँ लोट् लकार "कामचारानुज्ञा" के अर्थ में प्रयुक्त हुमा है / १५-प्रस्य घनच्छायस्य (प्रच्छायस्य ) वृक्षस्याषस्तिष्ठाम, मातपाक्रान्तोऽयमुद्देशः / १६-ज्वलतोऽङ्गारानेकैकशः कनकमुखेन (संदशेन) धारय समुह्य च वारिणा शमय / २०-पादनिर्णजनं कृत्वा विप्रा भन्नेन परिविष्यन्ताम् / यहाँ 'मन्नेन' में तृतीया पर ध्यान देना चाहिये। ऐसा ही शिष्ट व्यवहार है / 'परिवेषय विप्रेभ्योऽनम्' / एयन्त परिवेषि के प्रयोग होने पर ऐसी रचना भी हो सकती है / अभ्यास-२२ ( लोट् लकार) १-तुम्हारा मन धर्म में लगे / और सत्य में निष्ठित हो / २-प्रिये ! मुझे उत्तर दो 'चुप क्यों बेठी हो। क्या कुपित हो / ३-हे कुन्तीपुत्र ! दरिद्रों का पालन करो, धन वालों को धन मत दो। ४-अपना मुँह खोलो, मैं पौषध डाल दूंगा। ५-हे जुलाहे ! मेरे लिये इस सूत की एक धोती बुन दो। 6-* राजा प्रजा की भलाई के लिये काम करे और शास्त्र-श्रवण से बढ़े हुए कवियों की वाणी पूजित हो। ७-कृपया दरवाजा बन्द कर दो, बहुत 1-1 एनं गृहं प्रापय / २-२-रूप्यकद्वयलम्यं गोधूमचूर्णम् / ३चतुर्णा पंक्तिभिः / ४-४-शयनीयं रच्यताम् / शय्याऽऽस्तीर्यताम् / ५-सम् ऊह ल्यप् / यहाँ धातु को ह्रस्व हुमा है। 'उपसर्गाद्धस्व ऊहतेः' / ६-६किमिति जोषमास्से, तूष्णीका किमास्से। जोषम्, तूष्णीकाम्-दोनों मम्पय हैं। ७-सम्+, मपि धा, पि+पा, दा।