________________ ( 72 ) ६-साध्वसं मुञ्च, प्रतिबुध्यस्व च। -मात्मसदृशं भर्तारं लभस्व (विन्दख) प्रात्मसदृशेन भी युज्यस्व, वीरसून भव / यहाँ लोट् सकार आशीर्वाद के अर्थ में प्रयुक्त हुमा है। १४-संधियतां यज्ञः / यहां लोट् लकार 'प्राज्ञा' के अर्थ में प्रयुक्त हुमा है। १६–मायं वर्षय व्ययं च ह्रसय ( पायं प्रकर्ष, व्ययं चापकर्ष, मायमुपचिनु, व्ययं चापचिनु ) / १८-सर्वप्रथमं नावमारोहत सर्वपश्चाश्च ततोऽवरोहत। २०-पूर्व क्षुरं निश्य (निशिनु ) ततः कूचं वप / निश्य शो दिवा० का रूप है और निशिनु शि स्वा० उ० का। अभ्यास-२१ ( लोट् लकार) १-महाराज-हे ककिम् ! अपने कर्तव्य के स्थान पर चले जामो। क की-जो महाराज की पाज्ञा / २–यदि तुम चाहो तो यह काम समाप्त कर सकते हो / ३–मेरी इच्छा यह है कि पाज माप मेरे घर भोजन करें, इस तरह हमें मापस में मिलने पर विचार विनिमय करने का सुमवसर मिलेगा। ४-पआपके लिये यह अच्छा अवसर है कि माप अपनी योग्यता दिखावें। ५-राजा ने मादेश दिया कि ब्राह्मणों को भोजन के लिये यहां निमन्त्रित किया जाय / ६-कुछ देर के लिये अपनी जबान पामिये, ज्यादा बकबक करना अच्छा नहीं होता। 7 कुछ भी हो मैं अपने कपन का एक शब्द भी वापिस' लेने को तैयार नहीं। 8-* उठो, जागो। श्रेष्ठ (प्राचार्यों ) के पास जाकर ज्ञान सीखो। ६-मेरा धरोहर' वापिस करो, अन्यथा मैं न्यायालय में दावा कर दूंगा। १०-बड़ों का अभिवादन करने के लिए उठो। भौर उन्हें प्रादर पूर्वक मासन दो। 11- राजा प्रजामों के हित के लिये काम करे, और यथासमय बादल बरसे। १२पाचमन करो, इससे तुम्हारा गला साफ हो जायगा। १३-उसे मोतिया' १-१-कामो मे, कामये, इच्छामि / २-२-भोजनेन / ३-३कञ्चित् कालं सन्दष्टजिह्वो भव ( नियच्छ वाचम्, नियन्त्रय जिह्वाम् ) / ४प्रति+सम् +ह / ५-माधि-पुं०। ६-प्रति+निर् +यत् चुरा० / ७-७गुरुम् प्रत्युत्तिष्ठ (प्रभ्युत्तिष्ठ ) / यहाँ 'पभिवादनाय' कहने की प्रावश्यकता नहीं। क्रियापद के अर्थ में ही यह बात मा गई। ८-अप प्राचाम / तेन तगेकासो भविष्यति / ६-वृत्तमस्य नेत्रपटलेन रोगेण /