________________ ( 68 ) उपप्ल का वही अर्थ है जो उप द्रु का है, विनित करना, पीड़ित करना। 11- -स्मरसि कृष्ण ! गोकुले वत्स्यामस्तत्र च कालिन्दीकूले विहरिष्यामः / यहाँ लट् भूतकाल की क्रिया का निर्देश करता है / 'अभिज्ञावचने लुट' (3 / 2 / 112) / १३-न चदवेक्षिष्यसे तनूजान् (न चेत्साघु चिन्तयिष्यसि सुतान्) प्रसंशयं ते सत्पथाद् भ्रंशिष्यन्ते (भ्रंशिष्यन्ति ) / भ्रश् भ्वा० प्रा० दिवा० प० है / कोष्ठक में दिया गया रूप दिवा० प० का है। १५-अप्येतस्मात्सप्ताहादग्विासिद्धा आग्ने यचूर्णेन 'निसूदयिष्यन्ते / आसिद्ध = बद्ध, केदी / अभ्यास-१८ (लट् लकार) १-पांच छः दिन में हम स्वयं वहाँ जायेंगे और सारी बात की पड़ताल करेंगे। २-क्या तुम मुझे कल दोपहर मेरे घर पर मिल सकते हो ? मुझे तुमसे कुछ निजी बातें करनी हैं। ३-यदि वृष्टि होगी तो 'मनाज बोयेंगे२. नहीं तो प्रब के यू ही समय निकल जायगा। ४-गरमी की ऋतु आयेगी तो हर जगह धूल उड़ाती हुई गरम हवा चलेगी भोर कई जगह जोर की प्राधियां प्रावेंगी। ५--कुम्भ के मेले पर लाखों पादमी इकट्ठे होंगे। वह दृश्य देखने योग्य होगा। ६-यह सुनकर अध्यापक तुम से बहुत बिगड़ेगा', डर है कि तुम्हें पीटे भी / ७–मैं यह पुस्तक तुम्हें एक शर्त पर वापिस ,गा और वह यह है कि तुम मुझे अपनी "काशिका" चार दिन के लिये दो। ८-क्या आप अपने दर्शनों से मेरे घर को पवित्र करेंगे ? मेरे बन्षु कई दिनों से माप से मिलना चाहते हैं। यदि तुम इस गहरे तालाब में उतरोगे तो डूब जामोगे। १०-शब्दों द्वारा न कही हुई बात भी समझ में मा जायगी, यदि तू बुद्धिमान् है / क्योंकि दूसरों के संकेत को समझ लेना ही बुद्धि का फल है। ११-वह ब्राह्मण है, वह इतने से ही १-निपूर्वक सूद् के 'स्' को '' करना प्रशास्त्रीय है। पर बहुत जगह किया हमा मिलता है। 2-1 बीजानि वस्यामः, बीजवापं करिष्यामः, बीजाकरिष्याम: क्षेत्राणि / 3--3 सम् इ, सम् पव-इ, सम् वृत् / 4-4 त्वां भूयोऽभिक्रोत्स्यति / 5-5 एकेनाभिसन्धिना / ६-संनिधिना। ७–सत् कृ, सम् भू-णिच् /