________________ होते हैं। ३-'जब वृक्ष की जड़े नंगी हो जाती हैं 'वह हिल जाता है और कुछ काल के पीछे उखड़ जाता है / ४-जो यह विचारकर खाता है कि यह मेरे अनुकूल है और यह अनुकूल नहीं है, वह बीमार नहीं होता। ५-जब कोई यह सुनता है कि मेरा मित्र मेरी चुगली करता है तो उसे अपार पीड़ा होती है / ६-अनार और आंवले की खटास को छोड़कर सभी खटास गरमी करती है / ७-मैं राज्य नहीं चाहता, स्वर्ग नहीं चाहता, मोक्ष नहीं चाहता, मैं तो दुःख से पीडित प्राणियों की पोडा का शमन चाहता हूँ। --जो क्षत्रिय देश के हित से प्रेरित होकर विना स्वार्थ के युद्ध करते हैं और शत्रुनों को मार भगाते हैं वे निश्चय ही स्वर्ग को जाते हैं। ६-ये खिलाड़ी लड़के अभी तक खेल रहे हैं। इन्हें अपनी पढ़ाई की कुछ भी पर्वाह नहीं / 10 यज्ञ में जो पशु का वध है वह कल्याण के लिए पाप का प्रारम्भ है, ऐसा हमारा विचार है। दूसरों का इससे भिन्न विचार है। ११-जब राजा अपनी प्रजामों को कर आदि से अत्यन्त पीडित करता है तब वे और उसके विरुद्ध उठ खड़ी होती हैं / १२-जो दूसरों के धन का लालच करता है वह पतित हो जाता है। १३-यह बढ़ई लकड़ी काट रहा है, वह पारे से चीर रहा है और फिर यह तीसरा छीलता जाता है और चौकोन बनाता जाता है / १४-वह बीमार नहीं है, बीमार होने का बहाना करता है। १५-अब एकान्त बना दिया गया है। अब मैं पाप से अपनी बीती कहता हूं। १६-कई एक भिक्षु बालों को नोचते हैं, मैले कुचले वस्त्र पहनते हैं और बार-बार उपवास करते हैं। इस प्रकार अपने माप को विविध 'क्लेश देते हैं, इसे वे 'पावागमन से छुटने का उपाय समझते हैं। संकेत-४-य इदं ममोपशेते इदं नोपशेत इति विविच्यान्नमश्नाति स माभ्यमयति / ५-यदा कश्चिन्निशाम्यति मित्रं मे मां परोक्ष निन्दति सदा भशं दुःख्यति / सुख दुःख तक्रियायाम् / कण्ड्वादिः / ( तदा जायते नामास्योत्तमा रुक / ) ६-पित्तलमम्लमन्यत्र दाडिमा १-१-यदा वृक्ष माविमूलो भवति / २-वि० हल भ्वा०प० / ३उद् वृत् भ्वा० मा० / 4-4 मध्ययनं नाद्रियन्ते / 5--5 तस्मिन् (तं प्रति) विकुर्वते / वि कृ यहाँ प्रात्मनेपद में ही साधु होगा। यहां वह अकर्मक है। ६-लुश्च म्वा० / ७-कचराणि, मलदूषितानि, मलिनानि / ८–क्लिश्नन्ति / १०।६-संसरण-नपु।