________________ ( 46 ) में मर्यालयों की तरह दुर्बलों को अधिक बलवाले खा जाते हैं और समस्त राष्ट्र कर्णवार-रहित नौका को तरह नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है / ६-यद्यपि वह बीमारी से क्षीण हो गया है तो भी अब धीरे 2 ताकत पकड़ रहा है। १०-अधिक वर्षा के कारण इस मकान की छत टपकती रहती है जिससे हम बहुत तंग मा गये हैं, सब सामान भीग गया है। ११-मेरे पेट में गुड़गुड़ हो रही है / कुछ दर्द भी रहती है। कुछ वात का जोर है / १२-यह लड़का बागों से निकले हुये घोड़े की तरह जहाँ चाहता है चला जाता है। १३-*वह ( सच्चा) विजयी है जिस के वश में शत्र प्रासानी से पा जाता है। जो दो में से एक के बचने पर विजयी होता है वह वस्तुतः हार गया है। १४-मनुष्य अभिन्न हृदय' मित्र में जैसे विश्वास करता है वैसे बन्धु अथवा भाई में भी नहीं / १५-इस स्त्री के रोग की कोई चिकित्सा नहीं / अब यह नष्ट हुई समझिये। इसका बचाव नहीं हो सकता। १६-यदि तू मांस खाता है, तुझे इससे कुछ लाभ नहीं, हाँ शास्त्र का विरोध अवश्य होता है। ___ संकेत-१-यां सिक्थकवतिरिति वेत्थ सा वसादशा भवति / ४-और यह भी बात है......= अन्यच्च / स तमोवगुण्ठितायां संकटायां च प्रतोलिकायां वसति / ५-स न कस्यापि प्रत्ययं याति (न कमपि प्रत्येति), शश्वच्छ शङ्कते / तेन चेतःस्वास्थ्येऽस्य भागो न ( चेतोनिर्वृतौ नासौ भागी)।६-लानोऽप्यसो सम्प्रति मन्दमन्दमुल्लाघते / लाघ सामर्थ्य भ्वा० प्रा० ।१०-अतिवृष्ट श्छदिरस्य सदनस्य (शरणस्य) प्रश्च्योतति, येनातङ्कामः / अभिषिक्तश्च सर्वः परिबर्हः / छदिस पाणिनीय लिङ्गानुशासन के अनुसार स्त्रीलिङ्ग है। अमर अनुसार नपु. है। ११-कर्दति मे कुक्षिः किंचिद् व्ययते च / वातोऽपि प्रकुप्यति मात्रया / १६-यदि मांसमश्नासि, नेदं तवोपकरोति, केवलं शास्त्रमतिचर्यते / अभ्यास-६ ( लट् ) १-मांगना तो मरने का दूसरा नाम है। तो क्या मैं अब दूसरे के अन्न से निर्वाह करूँ / भाग्य के बदल जाने पर मनुष्यों का बार 2 तिरस्कार होता है। २-इस संसार से चलते हुए जीव के अपने कर्मों के फल हो पाथेय १-१विप्लवते। २-निरन्तर चित्त-वि० / ३-वि० सम्म मा० / ४-पाथेय, पथ्यदन-नपु.। प्र० क० 4